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अपभ्रंश भारती - 9-10
महासरं पत्तविसेसभूसियं
महासरं पत्तविसेसभूसियं सुहालयं सक्कइविंदसेवियं। सुलक्खणालंकरियं सुणाययं णिउ व्व रामु व्व वणं विराइयं॥वंसत्थ॥ रायहंसगइगमण
रंभाजंघोरुयअइकोमल। . पवरलयाहररमण कयपसूयणियसण णिरु णिम्मल॥ अलिरोमावलिणिद्ध वित्त तल्लणाहीसुमणोहर। पीणपवरउत्तुंगमाहु
लिंगउब्भासियथणहर॥ वेल्लीभुयसुकुमाल
रत्तासोयपत्तकरसुंदर। बिंबीहलअहरदल दाडिमबीयसुदसणाणंदिर॥ चंपयहुल्लसुणास वियसियइंदीवरदललोयण। पोमाणण सिहिपिच्छकेसबंधजणमयणुक्कोयण॥ चंदणघुसिणरवण्णवण्ण तिलयंजणसुपसाहण। कप्पूरायरसोह
बहुभुयंगसेवियहरिवाहण॥ कंचणवंत सुमंड कोइलललियालावसुहासिणि। तरुराइय वणे तेत्थु दिट्ठिय राएँ णाइँ विलासिणि॥ इयगुणेहिँ पर उण्ण कासु ण हियवउ हरइ णिरुत्तिय।
कामलेह णामेणं पद्धडिया फुडु एस पउत्तिय॥ घत्ता - रायागमणेण तणुरोमंचिय भासइ।
णवकुसुमहलेहिँ अग्धंजलि व पयासइ॥८॥
सुदंसणचरिउ 7. 8