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________________ 114 अपभ्रंश भारती -9-10 'पउमचरिउ' में अभिव्यंजित 'राजनीतिशास्त्र' विद्याधरकाण्ड की सोलहवीं संधि में मंत्रियों तथा उनकी संख्या पर चर्चा की गयी है। इस सम्बन्ध में विभिन्न व्यक्ति अपनी राय प्रकट करते हैं कि मंत्रिमंडल में कितने मंत्री होने चाहिये। पाराशर कहते हैं- दो मंत्री होना उचित है। एक मंत्री से राज्य कार्य नहीं होता । नारद कहते हैं, दो भी नहीं होने चाहिये। एक-दूसरे से मिलकर अनुचित सलाह दे सकते हैं । कौटिल्य कहते हैं- इसमें क्या संदेह है, तीन या चार मंत्रियों की संख्या उचित है। मनु के अनुसार - एक, दो या तीन मंत्रियों से कार्य-सिद्धि नहीं होती अतः बारह मंत्रियों की संख्या उचित है। बृहस्पति के अनुसार सोलह मंत्री उचित हैं। भृगुनंदन के अनुसार - बीस होने पर कार्य बिना कष्ट के विवेकपूर्ण होता है । इंद्र कहते हैं - एक हजार मंत्रियों के बिना कैसा मंत्र? एक से दूसरे को बुद्धि होती है तथा बिना किसी कष्ट के कार्य की सिद्धि हो जाती है।14 । यद्धकाण्ड की सत्तरवीं संधि में राजनीतिशास्त्र के माध्यम से तथ्यों को स्पष्ट किया गया है - राजनीतिशास्त्र इस तथ्य का निरूपण करता है कि अकुशल लोगों से कुशल लोगों को नहीं लड़ना चाहिये। राजा को अपने शासन में पूर्णतया रुचि लेनी चाहिये। शत्रुसेना को बलशाली देखकर उससे दर रहना चाहिये। यदि सेना समान स्तर की हो तो थोडा-सा यद्धाभ्यास कर लेना चाहिये। यदि सेना बड़ी है तो समर्पण कर देना ठीक है क्योंकि बड़ा राजा छोटे राजा पो दबा देता है। इसलिये अवसर देखकर ही कोई कदम उठाना उचित होगा। सज्जन लोगों के स लड़ना भी उचित नहीं। प्रयत्नपूर्वक तंत्र को बचाना चाहिये। 'अर्थशास्त्र' में पृथ्वीमंडल के ये ही कार्य निरूपित हैं।15 'पउमचरिउ' में वर्णित वनस्पतिशास्त्र विद्याधर काण्ड की प्रथम संधि में दाडिम, केतकी, पान तथा सुपाड़ी का उल्लेख किया गया है। तीसरी संधि में पुन्नाग, नाग, कर्पूर, केकोल, एला, लवंग, मधुमालती, मातुलिंगी, विडंग, मरियल्ल, जीर, उच्छ, कुंकुम, कुडंग, नवतिलक, पद्माक्ष, रुद्राक्ष, द्राक्षा, खजूर, जंबीरी, घन, पनस, निम्ब, हड़ताल, ढौक, बहुपुत्रजीविका, सप्तच्छद, अगस्त, दधिवर्ण, नंदी, मंदार, कुन्द, इन्दु, सिन्दूर, सिन्दी, वर, पाटली, पोप्पली, नारिकेल, करमन्दी, कंधारी, करिमर, करीर, कनेर, कर्णवीर, मालूर, तरल, श्रीखण्ड, श्रीसामली, साल, सरल, हिंताल, ताल, ताली, तमाल, जम्बू, आम्र, कंचन, कदम्ब, भूर्ज, देवदारु, रिट्ठ, चार, कौशम्ब, सद्य, कोरण्ट, कोंज, अच्चइय, जूही, जासवण, मल्ली, केतकी तथा जातकी वृक्षों का उल्लेख आया है। चौदहवीं संधि में केदार, अशोक, मालतीमाला, पाटल, पूगफल, बकुल का उल्लेख आया है। ___ अयोध्याकाण्ड की तेईसवीं संधि में पान का प्रसंग आया है। बत्तीसवीं संधि में पीपल, सत्यवंत, इंद्रवृक्ष, सरल, प्रियंगु, साल, शिरीष, नाग, मालती, कल्पवक्ष, अश्वत्थ, दधिवर्ण, चम्पक वृक्षों का वर्णन किया गया है। अड़तीसवीं संधि में शिंशपा वृक्ष का नाम आया है। सुंदरकाण्ड की उनचासवीं संधि में मल्लिका, कंकेली, लवलीलता, नारंग, चंपा, तिलक, मालूर मातुलिंग, मालूर, दाख, खजूर, बुंद, देवदारु, कपूर, वट, करीर, खैर, एला, कक्कोल,
SR No.521857
Book TitleApbhramsa Bharti 1997 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size10 MB
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