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अपभ्रंश भारती - 9-10
अक्टूबर 1997, अक्टूबर 1998
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हिन्दी भाषा पर प्राकृत का प्रभाव
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डॉ. बहादुर मिश्र
भाषिक दृष्टि से हिन्दी में अपभ्रंश और प्राकृत की परम्पराएँ संस्कृत की तुलना में कहीं अधिक सुरक्षित हैं। इसका कारण यह है कि भाषिक विकास की दृष्टि से हिन्दी अपभ्रंश की ठीक पीठ पर आती है । फलस्वरूप, हिन्दी अपभ्रंश की सीधी / सहज वारिस ठहरती है । किन्तु, सामान्यजनों के बीच विपरीत धारणा प्रचलित है कि हिन्दी संस्कृत की वारिस है, न कि अपभ्रंश की। यही कारण है कि कुछ लोग इसे 'संस्कृत की बेटी' कहकर अभिहित करते हैं । जहाँ तक हिन्दी में प्रचलित तत्सम शब्दावली (जैसे पृष्ठ, चरण, हस्तलाघव, पाद- प्रहार, अपयश, अपरिहार्य, शल्य चिकित्सा, कथा, अश्व इत्यादि) का प्रश्न है, यह बात सही हो सकती है। वैसे, हिन्दी में प्रयुक्त तत्सम शब्दावली का एक बड़ा भाग संस्कृत से प्राकृत/ अपभ्रंश होते हुए आया । डॉ. भोलानाथ तिवारी ने हिन्दी में स्रोत की दृष्टि से 'तत्सम' शब्द के जो चार प्रकार निर्धारित किये हैं, उनमें पहला प्रकार प्राकृतों (पालि, प्राकृत, अपभ्रंश) से होकर आनेवाले बहुसंख्यक शब्दों का है; यथा - अचल, अघ, काल, कुसुम, जन्तु, दण्ड, दम इत्यादि ।' लेकिन, जहाँ तक हिन्दी के 'तद्भव' शब्द भंडार का सवाल है, ये (शब्द - भंडार) भी मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं - प्राकृत तथा अपभ्रंश के रास्ते हिन्दी में आए। उदाहरण के लिए -