SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश भारती - 8 नवम्बर, 1996 — अपभ्रंश साहित्य और उसकी कृतियाँ - - प्रो. डॉ. संजीव प्रचंडिया भारतीय आर्य भाषा के विकास की जो अवस्था अपभ्रंश नाम से जानी जाती है उसके लिए प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में अपभ्रष्ट और अपभ्रंश तथा प्राकृत में अवब्भंश, अवहंस, अवहत्थ, अवहट्ठ, अवहठ आदि नाम मिलते हैं।' आज से लगभग 94 साल पहिले सन् 1902 ई. में जर्मन विद्वान पिशेल ने अपना पहिला संग्रह 'माटे रियालिएन त्सुरकेंट निस डेस अपभ्रंश' तैयार किया जिसमें उन्होंने हेमचन्द्र प्राकृत-व्याकरण के सभी अपभ्रंश छंदों के अतिरिक्त पैंतीस पद्य और जोड़े। इसी प्रकार सन् 1918 ई. में जर्मन के ही याकोवी ने कवि धनपाल रचित 'भविसयत्त कहा' का सम्पादन किया । वास्तव में ये लोग 'अपभ्रंश साहित्य' को शोध-खोज की दृष्टि से उभारकर लाने में सहायक हुए हैं। इस दृष्टि से श्री जिनविजय मुनि का कार्य विशेष महत्त्व का है। उन्होंने पुष्पदंत का महापुराण, स्वयंभूकृत पउमचरिउ, हरिवंशपुराण आदि का सफल सम्पादन किया था । इसी प्रकार प्रो. हीरालाल जैन कारंजा जैन भंडार को झाड़-बुहार कर जसहरचरिउ, णायकुमारचरिउ, करकंडचरिउ, पाहुडदोहा आदि ग्रंथों को प्रकाश में लाये । 59 सामान्य रूप से अपभ्रंश साहित्य की ज्ञात पुस्तकों की संक्षिप्त किन्तु अकारादि क्रम में सूची दी जा सकती है जिससे अपभ्रंश साहित्य का साहित्यिक कृतियों की दृष्टि से परिचय प्राप्त हो सके । यथा अ अमरसेन- चरित - माणिक्कराज
SR No.521856
Book TitleApbhramsa Bharti 1996 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1996
Total Pages94
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy