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________________ अपभ्रंश भारती -8 13 साहित्य से प्रारंभ होती है और संस्कृत, अपभ्रंश तथा हिन्दी जैसी आधुनिक भाषाओं के साहित्य में उनके विभिन्न आयाम दिखाई देने लगते हैं। यहाँ हम उन्हीं आयामों की ओर संकेत करना चाहेंगे। काव्यात्मक रूढ़ियाँ ___ काव्यात्मक रूढ़ियां मूलत: अशास्त्रीय और अलौकिक होती हैं पर कविगण देश-काल के अंतर का ध्यान न रखकर भी परम्परावश उनका वर्णन करते हैं - "अशास्त्रीयमलौकिकं च परम्परायातंयमर्थमुपनिबध्नन्ति कवय; देशकालांतरवशेन अन्यथात्वेऽपि, स कवि-समयः।।2 भामह, दण्डी तथा वामन अशास्त्रीय और अलौकिक वर्णन को काव्यदोष के अन्तर्गत मानते हैं पर राजशेखर उन्हें 'कवि समय' की सीमा के भीतर रखकर स्वीकृत कर लेते हैं। राजशेखर के समय तक प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश काव्य साहित्य स्थिर हो चुका था। इस समूचे साहित्य के आधार पर कुछ ऐसी काव्य-रूढ़ियों का निर्माण हुआ जिनका संबंध लोकाख्यान या लोकाचार या अंधविश्वास से रहा। ये सभी तत्त्व कथानक रूढ़ियों में भी प्रतिबिम्बित हुए हैं। राजशेखर ने ऐसे ही तत्त्वों को कवि-समय के रूप में विस्तार से पर्यालोचित किया है। इन काव्यात्मक रूढ़ियों का प्रयोग सभी कवियों ने अपने-अपने कथानकों के विकास में किया है परन्तु हम विस्तार-भय से उनका विवेचन यहाँ नहीं कर रहे हैं। कथानक रूढ़ियाँ __कथानक संस्कृति-सापेक्ष होते हैं इसलिए कथानक रूढ़ियों का फलक बहुत विस्तृत हो जाता है। प्राकृत-अपभ्रंश कथा साहित्य में ये कथानक रूढ़ियाँ इस प्रकार उपलब्ध होती हैं - प्राकृत कथा साहित्य की पृष्ठभूमि में हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्य के आधार पर डॉ. नेमिचंद्र शास्त्री ने विषय की दृष्टि से कथानक रूढ़ियों को दो भागों में विभाजित किया है - (1) घटनाप्रधान, (2) विचार या विश्वास-प्रधान। (1) घटना प्रधान - घोड़े का आखेट के समय निर्जन वन में पहुँच जाना, मार्ग भूलना, समुद्र-यात्रा करते समय यान का भंग हो जाना और काष्ठ-फलक के सहारे नायक-नायिका की प्राण-रक्षा जैसी रूढ़ियाँ इस कोटि के अन्तर्गत हैं। (2) विचार या विश्वास प्रधान - स्वप्न में किसी पुरुष या किसी स्त्री को देखकर उस पर मोहित होना अथवा अभिशाप, यंत्र-मंत्र, जादू-टोना के बल से रूप-परिवर्तन करना आदि विचार या विश्वास-प्रधान रूढ़ियों के अन्तर्गत आते हैं। . डॉ. शास्त्री ने इन दोनों प्रकार की कथानक रूढ़ियों को दस भागों में विभाजित किया है और फिर उनके भेद-प्रभेदों को विस्तार से स्पष्ट किया है। ये दस भेद इस प्रकार हैं - 1. लोक-प्रचलित विश्वासों से सम्बद्ध कथानक रूढ़ियाँ। 2. व्यंतर, पिशाच, विद्याधर अथवा अन्य अमानवीय शक्तियों से सम्बद्ध रूढ़ियाँ। 3. देवी, देवता एवं अन्य अतिमानवीय प्राणियों से सम्बद्ध रूढ़ियाँ। 4. पशु-पक्षियों से सम्बद्ध रूढ़ियाँ। 5. तंत्र-मंत्रों और औषधियों से सम्बद्ध रूढ़ियाँ।
SR No.521856
Book TitleApbhramsa Bharti 1996 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1996
Total Pages94
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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