SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्तुति जय तुहुँ गइ तुहुँ मइ तुहुँ सरणु। तुहुँ माय वप्पु तुहुँ वन्धु जणु॥ तुहुँ परम-पक्खु परमत्ति-हरु। तुहुँ सव्वहुँ परहुँ पराहिपरु॥ तहँ दंसणे-णाणे-चरित्ते थिउ। तुहुँ सयल-सुरासुरेहिँ णमि॥ सिद्धन्तें मन्तें तुहुँ वायरणे। सज्झाए झाणे तुहुँ तवचरणे॥ अरहन्तु वुद्ध तुहुँ हरि हरु वि तुहुँ अण्णाण-तमोह-रिउ। तुहुँ सुहुमु णिरञ्जणु परमपउ तुहुँ रवि वम्भु सयम्भु सिउ॥ - महाकवि स्वयम्भू (प.च. 43.19.5-9) - जय हो, तुम (मेरी) गति हो, तुम (मेरी) बुद्धि हो, तुम (मेरी) शरण हो। तुम (मेरे) माँ-बाप हो, तुम बंधुजन हो। तुम परमपक्ष हो, दुर्मति के हरणकर्ता हो। तुम सब अन्यों से (भिन्न हो), तुम परम आत्मा हो। ___- तुम दर्शन, ज्ञान और चारित्र में स्थित हो। सकल सुर-असुर तुम्हें नमन करते हैं । सिद्धान्त, मन्त्र, व्याकरण, स्वाध्याय, ध्यान और तपश्चरण में तुम हो। - अरहन्त, बुद्ध तुम हो, विष्णु और महादेव और अज्ञानरूपी तिमिर के रिपु (शत्रु) तुम हो। तुम सूक्ष्म, निरंजन और मोक्ष हो, तुम सूर्य, ब्रह्मा, स्वयंभू और शिव हो। (x)
SR No.521856
Book TitleApbhramsa Bharti 1996 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1996
Total Pages94
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy