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एय वयण आयन्नवि सिंधुब्भवयणि, ससिवि सासु दीहुन्हउ सलिलुब्भवनयणि । तोड़ करंगुलि करुण सगग्गिर गिर पसरु, जालंधरिव समीरि मुंध थरहरिय चिरु ॥66 ॥
अपभ्रंश - भारती 5-6
वह चन्द्रमुखी, कमलाक्षी मुग्धा ये वचन सुनकर दोर्घोष्ण श्वास लेती हुई हाथ की अंगुलियाँ तोड़कर करुण गद्गद शब्द करती हुई वायु-प्रताड़ित कदली की भाँति देर तक थरथराती रही ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि संदेश रासककार ने यद्यपि अधिकांश परंपरागृहीत उपमानों काही प्रयोग किया है, फिर भी अपनी काव्योचित सहृदयता से उन्हें प्राणवंत बना दिया है। कहींकहीं अद्दहमाण ने स्वच्छंद पद्धति, विरल प्रयुक्त या नये उपमानों का प्रयोग करके अपनी मौलिकता का भी परिचय दिया है। संदेश रासक में मात्र बाह्य रूप-वर्णन ही नहीं है, अपितु गहरे जाकर हृदय पर पड़नेवाले रूप-प्रभाव को भी उपमानों के माध्यम से व्यक्त किया गया
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संस्कृत में रुय्यक आदि कतिपय अलंकारवादी आचार्यों ने उपमा को समस्त अलंकारों का बीज माना है। "उपमैवानेकप्रकारवैचित्र्येणानेकालंकारबीजभूता ।" जो हो, साम्यमूलक अलंकार - योजना के अंतर्गत जो सामान्य विषय गृहीत होते हैं, उन्हें अलंकार - शास्त्र की शब्दावली में प्राय: ‘उपमान' अथवा 'अप्रस्तुत' कह दिया जाता है। 24 प्रयोग की दृष्टि से ये (अप्रस्तुत अथवा उपमान) दो प्रकार के कहे जा सकते हैं
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(1) परंपरागत
अर्थात् ऐसे पदार्थ जो विशिष्ट पदार्थों के विशिष्ट रूप, गुण अथवा क्रिया के लिए युगों से व्यवहार में आते रहे हैं और उनके लिए एक प्रकार से अत्यन्त रूढ़ हो गये हैं तथा ( 2 ) नवीन
अर्थात् ऐसे पदार्थ जो रूपादि-संबंधी अपनी सर्वानुभूत विशेषताओं को रखते हुए भी विशेष प्रकार के पदार्थों के लिए कवियों द्वारा प्रयुक्त नहीं हुए एवं प्रत्येक कवि ने उन्हें अपनी इच्छा से विशिष्ट बिम्बों के भीतर नियोजित किया है।
(1) स्थूल के लिए स्थूल (2) स्थूल के लिए सूक्ष्म (3) सूक्ष्म के लिए सूक्ष्म तथा (4) सूक्ष्म के लिए स्थूल 25
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इस प्रकार कह सकते हैं कि साम्यमूलक अलंकारों के भीतर परंपरागत तथा नवीन इन दो प्रकार के उपमानों का प्रयोग होता है तथा वर्ण्य विषय की विशेषताओं के आधार पर इनकी योजना चार प्रकार की हो सकती है