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अपभ्रंश-भारती 5-6
से लक्ष्मण की देह से रावण द्वारा प्रक्षिप्त शक्ति स्वयमेव निकल जाती है और उसके सुगन्धित जल से लक्ष्मण स्वस्थ, सबल होते हैं।'
रामचन्द्र अपराजिता के, लक्ष्मण सुमित्रा के, भरत कैकेयी के एवं शत्रुघ्न सुप्रभा के पुत्र हैं। दशरथ के मित्र राजा जनक के एक पुत्र व एक पुत्री - भामण्डल एवं सीता हैं। विद्याधरों की उपस्थिति 'पउमचरिउ' में आघन्त है। कथा को नूतन मोड़ देने में उनकी भूमिका कदाचित् कम महत्त्वपूर्ण नहीं। भामण्डल को किसी देव द्वारा अपहृतकर विजया पर्वत श्रेणी में स्थित रथनूपुर चक्रवाल नगर में नन्दन वन के समीप फेंक दिया जाता है, जिसका पालन-पोषण राजा चन्द्रगति और रानी पुष्पावती करते हैं।
'पउमचरित' में अन्य रामकथा-ग्रन्थों के समान विश्वामित्र की उपस्थिति नहीं है, न ही मुनियों एवं यज्ञ-रक्षण हेतु राम-लक्ष्मण उनका अनुगमन करते हैं। वे जैनों के बलदेव और वासुदेव हैं -
तासु पुत्त होसन्ति धुरन्धर । वासुएव-वलएव धणुद्धर ।'
- उनके धनुर्धारी बलदेव और वासुदेव धुरन्धर पुत्र होंगे । बर्बर, शबर, पुलिंद तथा म्लेच्छों की सेना से घिरे राजा जनक की वे पिता की आज्ञा से सहायता करते हैं, जिससे प्रसन्न हुए राजा जानकी को राम के लिए अर्पित करते हैं।
सीता के रूप-सौन्दर्य पर केवल रावण ही नहीं, प्रत्युत् नारद, भिल्लराज रूद्रभूति और कालान्तर में (अपने एवं सीता के वास्तविक संबंध से अनभिज्ञ) भामण्डल भी आकर्षित होते हैं। अमर्ष से क्रुद्ध अनुचरों द्वारा धक्के देकर बाहर निकाले गये नारद सीता का चित्र भामण्डल को दिखाते हैं। पट में प्रतिमा देखकर कुमार कामदेव के पंचबाणों से बिद्ध हो उठता है -
दिट्ठ जं जें पडें पडिम कुमार। पंचहिं सरहिं विधु ण मारें - कुमार ने जैसे ही पट में प्रतिमा देखी तो मानो उसे कामदेव ने पाँचों तीरों से विद्ध कर दिया।
राजा चन्द्रगति अपने पुत्र की दशा देख चपलवेग विद्याधर को राजा जनक के अपहरण का आदेश देते हैं। अपहृतकर लाये गए जनक से चन्द्रगति स्वजनत्व करने का प्रस्ताव रखता है जिसे वे -
दिण्ण कण्ण मइं दसरह-तणयहो (मेरे द्वारा दशरथ-पुत्र के लिए कन्या दे दी गई) - कहकर ठुकरा देते हैं (21.11.4)।
स्वयंवर-प्रसंग 'पउमचरिउ' में यत्किंचित् भिन्न है। राम एवं लक्ष्मण यहाँ वज्रावर्त एवं समद्रावर्त नामक अत्यन्त दर्जय भाववाले दो धनषों को आयाम के साथ चढाते हैं। ये दोनों धनष राजा चन्द्रगति के राज्य से मिथिला लाये जाते हैं। राम का विवाह सीता से होता है और राजा शशिवर्द्धन अपनी अठारह कन्याओं में से आठ लक्ष्मण को और दस छोटे भाइयों को अर्पित करते हैं। इसी स्वयंवर में राजा द्रोण विशल्या को लक्ष्मण के लिए संकल्पित करते हैं।