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अपभ्रंश-भारती - 3-4
वह सुनार भय से काँपता हुआ, मार्ग में इधर-उधर देखता हुआ बाजार मार्ग में जाता हुआ जब साग के व्यापारी की दुकान के समीप आ गया (पहुँचा) तब किसी मनुष्य के द्वारा पकी हुई ककड़ी (खीरा) बाहर फेंकी गई और वह उस सुनार की पीठ पर लगी । उसके द्वारा समझा गया ( कि) किसी के द्वारा मैं प्रहार किया गया हूँ। (उसने) पीठ पर हाथ से छुआ, वहाँ (उसके द्वारा) खीरे के रस और बीज को छूकर विचार किया गया अहो, मैं प्रगाढरूप से प्रहार किया गया हूँ, इसलिए घाव के साथ खून भी निकला है, उसमें कीड़े भी उत्पन्न हुए हैं। इस प्रकार भय से अत्यन्त व्याकुल (वह) शीघ्र चलता हुआ घर-द्वार पर पहुँचा।
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बन्दहुए घरद्वार को देखकर अपनी पत्नी को बुलाने के लिए उच्च स्वर से कहा - " हे मदन की माता ! द्वार खोलो, द्वार खोलो।" वह अन्दर बैठी रही। सुनती हुई भी न सुनती हुई (सी) कुछ काल ठहरी । बहुत गुस्सा करने पर उसने आकर और दरवाजे को खोलकर इस प्रकार पूछा - " बहुत क्यों चिल्लाते हो ?" भय से ग्रस्त वह घर में घुसकर पत्नी से कहता है - " द्वार शीघ्र बन्द करो, ताला भी लगाओ।" सब करके उसके द्वारा पूछा गया - " इस प्रकार नग्न क्यों हुए ?" उसके द्वारा कहा गया 'अन्दर कोठरी में चलो, पीछे मुझको पूछो।" घर की अन्तिम कोठरी में जाकर निश्चिन्त हुआ । "उसके द्वारा फिर पूछा गया इस प्रकार नग्न क्यों आये ?" उसके द्वारा कहा गया- "चोरों द्वारा लूटा गया हूँ, सब छीनकर नग्न किया गया हूँ ।"
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उसने कहा- "मेरे द्वारा पहले (भी) कहा गया है (कि) हे स्वामी! तुम्हारे द्वारा मध्यरात्रि में पेटी को लेकर नहीं आया जाना चाहिए, तुम्हारे द्वारा (यह) नहीं माना गया, इसलिए इस प्रकार हुआ है ।" उसने कहा - "मैं महाबलवान (हूँ, तो भी) क्या करूँ ? यदि पाँच या छः चोर आये होते तो उन सबको मैं जीतने के लिए समर्थ होता किन्तु ये सैकड़ों चोर आये इसलिए मैं उनके साथ लड़ते हुए हरा दिया गया, सब लूटकर नग्न किया गया और पीठ में तलवार से प्रहार किया गया। पीठ को देखो, घावसहित कीड़े भी उत्पन्न हुए (हो गए)।"
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उसके द्वारा उसकी पीठ को देखकर जान लिया गया ये खीरे के बीज और रस हैं। पति के लिए ही कहा गया- " हे स्वामी ! भय से ग्रस्त होने के कारण तुम्हारे द्वारा इस प्रकार जाना गया है - 'किसी के द्वारा मैं प्रहार किया गया (और) इस प्रकार उससे खून निकला तथा वहाँ कीड़े भी उत्पन्न हुए', वह सत्य नहीं है। तुम खीरे के द्वारा प्रहार किये गये हो, उसका रस और बीज पीठ में लगे हैं।" तब उसके देह - प्रक्षालन लिए वह जल लेकर आई। अपने पति की देह की सफाई करके, पहनने के लिए उपहार में (उसने) वे ही वस्त्र दिये। वह उन वस्त्रों को देखकर ढीठता से कहता है - हुं हुं मेरे द्वारा उस समय ही तुम जान ली गई थीं। मेरे द्वारा विचार गया - मेरी पत्नी क्या करती है ? इसलिए भय से ग्रस्त की तरह वहाँ रहा और सब अपहरण की उपेक्षा की गई। अन्यथा मेरे सामने स्त्री की क्या शक्ति है ? उसने कहा - " हे स्वामी! तुम्हारा बल मेरे द्वारा उसी समय ही जान लिया गया ( था ), तुम गृह - शूर हो। अतः आज से तुम्हारे द्वारा मध्यरात्रि में पेटी को लेकर कभी भी न आया जाना चाहिए।" इस प्रकार पत्नी के वचन को उसने अंगीकार किया ।