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अपभ्रंश-भारती-2
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वह पिता के साथ घर में आया । (वह) बहू को पूछता है - (तुम्हारे द्वारा) माता-पिता का अपमान क्यों किया गया ? साधु के साथ वार्ता में असत्य उत्तर क्यों दिए गए ? उसके द्वारा कहा गया - तुम्ही मुनि को पूछो, वह सब कह देंगे । ससुर ने उपासरे में जाकर अपमानसहित मुनि को पूछा - हे मुनि । आज मेरे घर में भिक्षा के लिए तुम क्यों आये ? मुनि ने कहा - तुम्हारे घर को नहीं जानता हूँ, तुम कहाँ रहते हो ? सेठ विचारता है कि मुनि असत्य कहता है । फिर पूछा गया - क्या किसी भी घर में बाला के साथ वार्ता की गई ? मुनि ने कहा - वह बाला अत्यन्त कुशल है । उसके द्वारा मेरी भी परीक्षा की गई । उसके द्वारा मैं कहा गया - समय के बिना तुम कैसे निकले हो ? मेरे द्वारा उत्तर दिया गया - समय का, मरण समय का ज्ञान नहीं है, इसलिए आयु के पूर्व में ही निकल गया हैं । मेरे द्वारा भी परीक्षा के लिए ससुर आदि सभी के वर्ष (आयु) पूछे गये (तो) उसके द्वारा (बाला के द्वारा) उचित प्रकार से उत्तर कहे गये। सेठ ने पूछा - ससुर उत्पन्न नहीं हुआ, यह उसके द्वारा क्यों कहा गया? मुनि के द्वारा कहा गया - वह ही पूछी जाए, क्योंकि उस विदुषी के द्वारा यथार्थ भाव जाने जाते (जाने गये) हैं ।
• ससुर घर जाकर पुत्रवधू से पूछता है - तुम्हारे द्वारा मुनि के समक्ष इस प्रकार से क्यों कहा गया (कि) मेरा ससुर उत्पन्न ही नहीं (हुआ है) । उसके द्वारा कहा गया - हे ससुर । धर्महीन मनुष्य का मनुष्य भव प्राप्त किया हुआ भी प्राप्त नहीं किया हुआ (अप्राप्त) ही है, क्योंकि सत्-धर्म की क्रिया के द्वारा (मनुष्य) भव सफल नहीं किया गया (है) (तो) वह मनुष्य-जन्म निरर्थक ही है । उस कारण से तुम्हारा सारा जीवन धर्महीन ही गया, इसीलिए मेरे द्वारा कहा गया - मेरे ससुर की उत्पत्ति ही नहीं है । इस प्रकार सत्य बात पर (वह) सन्तुष्ट हुआ और धर्माभिमुख हुआ। फिर पूछा गया - तुम्हारे द्वारा सासू की (उम्र) छः मास कैसे कही गई ? उसके द्वारा उत्तर दिया गया - सासू को पूछो । सेठ के द्वारा वह पूछी गई । उसके द्वारा भी कहा गयापुत्र की बहू के वचन सत्य हैं, क्योंकि मेरी सर्वज्ञ-धर्म की प्राप्ति में छः माह ही हुए हैं, क्योंकि इस लोक में छः मास पूर्व मैं किसी (की) मृत्यु के प्रसंग में गई । वहाँ उस स्त्री (बहू) के विविध गुण-दोषों की वार्ता हई ।।
(वहाँ) एक वृद्धा के द्वारा कहा गया - स्त्रियों के मध्य में इसकी पुत्रवधू श्रेष्ठ है । यौवन की अवस्था में भी वह सासू की भक्ति में लीन (तथा) धर्म-कार्यों में भी अप्रमादी है, गृहकार्यों में भी कुशल (उसके) समान दूसरी नहीं है । इसकी सासू अभागी है, ऐसी भक्ति-प्रेमी पुत्रवधू के द्वारा धर्म-कार्य में प्रेरित किए जाते हुए भी धर्म नहीं करती है । इसको सुनकर बहू के गुणों से प्रसन्न हुई (मेरे द्वारा) उसके मुख से धर्म प्राप्त किया गया । धर्म-लाभ में छः मास हुए। इसलिए पुत्रवधू के द्वारा छः मास कहे गये, वह युक्त है ।