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अपभ्रंश-भारती-2
2. भुजंगप्रयात
यह बारह वर्णिक छन्द है जिसमें चार यगण होते हैं जिसमें क्रम से लघु-गुरु-गुरु आते हैं । यथा -
णरिदेण णाइंददेविदवदोथुओ, देव देवो अणिदो जिणिदो ।
महापंचकल्लाणणाणाहिणाणो, सया चाम रोहेण विज्जिज्जमाणो ॥6 3. प्रमाणिका इसमें 8 वर्ण होते हैं और वे लघु-गुरु क्रम से आते हैं । यथा - तओमुणिंदजंपियं
मणे वरं थिर थिय । सुतारहारपडुरं
गया सई समंदिर । णिबद्धणीलतोरण
विचित्त मत्तवारण । रसंतमत्तवारण
दिवायरं सुवारणं । सुहेमभित्तिपिगलं
अणेयगेय मंगल 147 4. मौक्तिकदाम
यह मालती छन्द का दुगुना होता है, इसमें 12 वर्ण होते हैं, वे चार जगणों में होते हैं । यथा -
गएहि दिणेहिँ कएहिँ मि अण्णु, मुणी मणगुत्तु बहुगुणपुण्णु । मडबसुगामपुराई चयतु, चउव्विहसंधसमाणु महंतु । खमाए महोवहि मेरु व तुगु, ससी व सुसोमु सुतेय पयंगु । समीरणु णाई वलेण महंतु, बहुब्भवदुक्खविणासु करतु ।
मलतु दलतु असेसु वि कम्म, जरामरणुब्भवणासियजम्मु ।" 5. मालती यह छन्द छह वर्णिक है । इसमें दो जगण होते हैं । यथा - णवेवि मुणिंदु
भवीयण चंदु । घरम्मि छुहेवि
चउक्के ठवेवि । समच्चिवि पाय
विहीऐं जवाय । पुणो वि णमंतु
तिलोय महंतु । करे वि समुद्ध
तहो सऍ छुद्ध । मुणीण सजोग्गु
सचित्तु अजोग्गु । ण देइ भवीउ
असुद्ध सवीउ । सुभोयणु देवि
सतो सु करेवि । इस प्रकार प्रस्तुत ग्रन्य में महाकवि पुष्पदन्त ने 9 सन्धियों में 150 कडवकों को लिपिबद्ध किया है । इन सन्धियों के अन्तर्गत विभिन्न छन्दों के प्रयोग ने इस ग्रन्थ को महत्त्वपूर्ण बना दिया है जिसका विवरण निम्न सारणी से द्रष्टव्य है -