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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६] શ્રી. જેને સત્ય પ્રકાશ [१ : २० पूर्णचंद्रसूरिके पट्टधर हरिभद्रसूरि (नामावलिके नम्बर आठवाले)का लेख सं. १४४१का है। प्रतिमा लेखोंसे मड्डाहगडच्छको अन्य परंपराके आचार्योंके नाम भी जानने को मिलते हैं। तेरहवीं शताब्दिसे १८ वीं शताब्दि तकके लेख 'आबू लेख संदोह में भी छपे है। समस्त प्रतिमा लेख संग्रह ग्रंथोंके आधारसे कुछ नई जानकारी प्रकाशमें लाई जा सकती है। अतः उसे आगे दी जा रही है। ____ मड्डाहगच्छकी अन्य कुछ शाखाओंका भी नाम मिलता है, जिनमें रत्नपुरीय, जाखडिया और जालौरा मुख्य है । जालौरा शाखामें १७ वीं शताब्दिमें सारंग नामकके एक अच्छे कवि हो गये है। जिनके रचित 'बिल्हण पंचाशिका चौपाई ' (सं. १६३९ जालोर,) 'भोजप्रबन्ध चौपाई' (सं. १६५१ जालोर) और 'कृष्णरुक्मणी वेलि'की संस्कृत टीका (सं. १६७८ पालनपुरमें रचित ) आदि ग्रंथ उपलब्ध है। इन्होंने ज्ञानसागरसूरिकी विद्यमानताका उल्लेख इस प्रकार किया है। बड़गच्छ शाखा चंद्र विचार, मड्डाहड़गछ गछ सिणगार । सूरि पदई जयवन्ता जाण, ज्ञानसागर सूरीस बखाण || ये सारंग कवि, वाचक पद्मसुन्दरके शिष्य थे, जिनके गुरुभाईका नाम गोविन्द था। सिरोही महाराजके प्राइवेट सेक्रेटरी श्री जयमलजी मोदीसे विदित हुआ कि मड्डाहड़गछच्की शाखाके अन्य महात्मा जालौर और जोधपुरमें अब भी विद्यमान है। उनके पाससे संभव है कुछ नई सामग्री प्राप्त हो। मुनिवर जयन्तविजयजीके उल्लेखानुसार मड्डाहड़गछका नामकरण जिस मड्डाहड स्थानके नामसे हुआ है व वर्तमान मडार (मढार) है, जो कि सिरोहीसे नैऋत्यकोणमें ४० माईल और डीसासे ईसानकोणमें २४ माईल है। भटाणासे वायव्यकोगमें ७ माईल और खराड़ीसे २६ माईल पश्चिममें है । सिरोही राजके तहसीलका यह गाँव है । मड्डाहड स्थान प्राचीन है। सुप्रसिद्ध वादिदेवसूरि वहींके पोरवाड वीरनागके पुत्र थे। मुनि कल्याणविजयजीके मतानुसार मड्डाहड वर्तमान मदुआ स्थान है । मडारमें अभी धर्मनाथ और महावीरस्वामोके दो मंदिर है। यहाँ पर मेधजी भट्टारकका उपासरा भी है, जो कि इसी गच्छके थे । मणिभद्र यक्षका मंदिर, जो मडारदेवीका मंदिर भी कहलाता है, उसमें चक्रेश्वरसूरिके पादुकास्थापनका लेख भी है। सं. १७७१ आदिकी पादुका इस गच्छके कुल गुरुओंकी भी वहाँ है । 'अर्बुदाचल प्रदक्षिणा' ग्रंथके पृष्ठ ६७ से ७२ में मुनि जयन्तविजयजीने उपर्युक्त जानकारी दी है। वे लेख 'अर्बुदाचल प्रदक्षिणा जैन लेख संदोह' में छपे हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.521718
Book TitleJain_Satyaprakash 1955 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1955
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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