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४. गुणचंद्रसूरि
५. धर्मदेवसूरि
अ४ : ५ ]
મડ્ડાહડ ગચ્છની પરંપરા
[ स्थ पोशाल - (पौषधशाला - उपासरा) देखने में आई । मैंने उसमें जा कर पूछताछ की तो पता मिला कि मड्डाहड़गच्छके महात्मा अभी भी इसमें रहते हैं और उनके पास ओसवाल, पोरवाल आदिकी बहुतसी वंशावलियें भी हैं । पहिली बार जब मैं गया तो वे गृहस्थ - कुलगुरु मुझे नहीं मिले पर दूसरी बार जाने पर वे मिल गये तो उनके पासकी वंशावलियां निकलवाके मैंने देखीं । सबसे प्राचीन वंशावली टिप्पण १७वीं शताब्दिके लिखित उनके पास मिले । उनमेंसे सं. ७११ के लगभग उन वंशोंके प्रतिबोधकों का उल्लेख था । उसके अनुसार सं. ७११ के लगभग चक्रेश्वरसूरिने अढारह हजार श्रावकोंको प्रतिबोध दियो । मेरे पास अधिक समय नहीं था अतः उन वंशावलियोंके नोट्स तो न ले सका पर मैंने उनसे मड्डाहड़गच्छकी पट्टावली की पूछताछ की। उनके पास की हस्तलिखित प्रतियों को भलीभांति देखने पर संभव है इस गच्छकी बडी पट्टावली मिल जाती; वह नही भी मिलती तो भी इस गच्छ सम्बन्धी बहुतसी नई जानकारी तो मिलती हो । पर उन्होंने मुझे केवल मड्डाहड़गच्छके परंपराकी नामावली ही दी जो यहाँ प्रकाशित की जा रही है ।
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१. चक्रेश्वरसूर
११. दयानन्दसूरि
२. जिनदत्तसूरि
१२. भावचंद्रसूरि
३. देवचंद्रसूरि
१३. कर्मसागरसूरि
१४. ज्ञानसागरसूरि
१५. सौभाग्य सागरसूरि
१६. उदयसागरसूरि
१७. देवसागरसूरि
१८. लालसागरसूरि
६. जयदेवसूरि
७. पूर्णचंद्रसूरि
८. हरिभद्रसूरि
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९. कमलप्रभसूर
१०. गुणकीर्तिसूरि
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२१. वागसागरसूरि
२२. केसरसागरसूरि
२३. भट्टारक गोपालजी
२४. यशकरणजी
२५. लालजी
२६. हुकमचंद २७. इन्द्रचंद
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२८. फूलचंद
२९. रतनचंद
३०.
१९. कमलसागरसूरि २०. हरिभद्रसूरि
उपर्युक्त नामावलिकी जांच करनेके पूरे साधन तो प्राप्त नहीं हैं पर प्रतिमा लेखों, प्रशस्तियां आदिसे जांच करने पर कुछ आचार्योंके नाम प्रतिमालेखों में मिले हैं, उनसे उनका समय निश्चित किया जा सकता है। जैसे " आबू लेख संदोह "के लेखांक ५५९ में धर्मदेवसूरिके पट्टधर देवसूरि प्रतिष्ठित सं. १३८९ का लेख छपा है। ये नामावलिके नम्बर ५ वाले धर्मदेवसूरि ही हैं। नामावलिमें नम्बर ६ में जयदेवसूरि नाम है, उनका प्रतिमालेख में देवसूरि नाम मिला है | लेखांक ५७५ में पूर्णचंद्रसूरि के प्रतिष्ठित सं. १४२० का लेख है ओर ५९९ में
१. यह संवत तो चक्रेश्वरसूरिका नहीं, संभव है, उन जातियों व गोत्रोंके स्थापनाका संवत् हो । चक्रेश्वरसूरि १३ वीं शतीके प्रतीत होते है ।