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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir અંક: ૪] એક અમેરિકન વિદ્વાનકી જ [७१ (२) पोलवीड प्रणाली---यह प्रणाली मर्केटरसे बिलकुल ऊलटी है । इसमें भिन्न भिन्न भागोका क्षेत्रफल तो दिखाई पड़ता है किन्तु आकार बदल जाते हैं। (३) कोनीकल प्रोजेक्शन--इससे ध्रुवके निकटवर्ती ऊँचे अक्षांशोंका ठीक नकशा नहीं बन पाता और ध्रुवको बिन्दु रूपमें नहीं दिखलाया जा खकता । लोनप्रणालीमें भी यह दोष है कि ध्रुबके समीप पृथ्वीके भाग परस्पर निकट हो जाते हैं और भूमध्य रेखा पर बहुत दूर। (४) आर्थोग्राफिक प्रोजेक्शन--इसमें नकशेके बीचका भाग तो ठीक बनता है, किन्तु किनारेके भाग घने हो जाते हैं। ऊपर नीचके भागोंमें भी त्रुटि रहती है। (५) स्टोरिओग्राफिक प्रोजेक्शन--इसमें किनारोंका क्षेत्रफल असली क्षेत्रफलसे बहुत बढ़ जाता है। इनके अतिरिक्त पोलीकोनिक और सेन्सन प्लेमम्टीडके भी प्रोजेक्शन प्रसिद्ध है किन्तु वे सब भी दोषपूर्ण है । किसीमें क्षेत्रफल, किसीमें आकार और किसीमें स्थिति ही गलत है। ऐसी दशामें पृथ्वी नारंगीके समान गोल है यह कहना कहां तक युक्तसंगत है ? जो कुछ भी हो " श्री जे. मेकडोनलकी वह नयी खोज (जो जैनधर्मानुसार है)" शीघ्र ही वैज्ञानिक जगतमें उथल पुथल पैदा करेगी। -'जीवन'से [ अनुसंधान पृष्ठ : ६५ से चालू ] सोऽहमभ्यर्थितोऽत्यर्थ, टीका ठक्कुरभीषणैः। सिन्दूरप्रकरस्यास्याकार्ष चारित्रवर्द्धनः ।। १० ।। [सिन्दूरप्रकरवृत्ति ] टीकारचनासमयसूचक श्लोका:कुमारसंभववृत्ति-गंभीरार्थकुमारसंभवमहाकाव्यस्य टीका मया, वर्षे विक्रमभूपतेविरचिता द्वैगूनन्दमन्वैङ्किते । माघे मासि सिताष्टमीसुरगुरावेषोञ्जलिवो बुधाः, संशोध्या क्वचिदन्यथा यदि भवेयुष्माभिरेव स्फुटम् । सिंदूरप्रकरवृत्ति- श्रीमद्विक्रमभूपतेरिघुवियद्वाणेंदुसंस्थापिते, वर्षे राधसिताष्टमीगुरूदिते टीकामिमां निर्मलाम् । सिंदूरप्रकस्य चारु कुरुतो निम्मपितामासिवान् । दृष्टांतैः कलितामन्यन्यधिषणश्चारित्रनामा मुनिः ।। ११ ॥ नैषधटीका-तेनामुष्य विपक्षवादिनिकरा दुर्वारविश्वंभरा । भृल्लेखप्रभुणा शिवेषुशेशभृत्संख्याकृते वत्सरे । टीका राधवलक्षमाधवतिथौ शक्रेण वक्रे महाकाव्यस्यातिगरीयसो मतिमतां श्रीनैषधस्यार्थदाः ।। १२ ।। For Private And Personal Use Only
SR No.521717
Book TitleJain_Satyaprakash 1955 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1955
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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