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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंच काव्योंके टीकाकार नरवेष सरस्वती वाचनाचार्य श्री. चारित्रवर्द्धन लेखक :-श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा, बीकानेर जैन साहित्यकारोंको बहुविध विशेषताओंमें जैनेतर ग्रंथो पर जैन टीकाओंका रचा जाना भी विशेष रूपसे उल्लेखनीय है । इन टीकाकारों से कई कई टीकाकारोंने तो ऐसी विद्वत्तापूर्ण विशद टीकाएं बनाई हैं, जिनसे मूल ग्रन्थको समझनेमें बहुत ही सुगमता होनेके साथ २ बहुतसी नवीन ज्ञातव्य जानकारी भी मिल जाती है। इन टोकाओंके द्वारा मूल ग्रंथोंका गौरव और प्रचार बहुत अधिक बढ़ा है। ऐसे समर्थ टोकाकारोंमें महाकवि कालिदासके मेघदूत, कुमारसंभव, रघुवंश और श्रीहर्षके नैषध तथा माघके शिशुपालवध-इन पांच काव्योंके टीकाकार 'वाचनाचार्य चारित्रवर्द्धन' विशेषरूपसे उल्लेखनीय है । पर इनके सम्बन्धमें बहुत ही कम लोगोंको जानकारी है। इसलिये प्रस्तुत लेखमें इनका संक्षिप्त परिचय कराया जा रहा है। ___ श्री. चारित्रवर्द्धनने अपनी टीकाओंकी प्रशस्तियों में अपनी प्रतिभाका तो सगर्व उल्लेख किया है, यावत् उन्होंने अपनेको नरवेष सरस्वती बतलानेमें भी हिचकिचाहट नहीं की, पर गुरुपरम्पराके अतिरिक्त अपने जन्म, वंश, जन्मस्थान आदिका कुछ भी उल्लेख नहीं किया, इसलिये केवल जन्म समयका ही अनुमान बतला कर उनकी गुरुपरम्पराका परिचय दिया जन्म एवं दीक्षा __आपकी उपलब्ध रचनाओंमें, रचना समयके उल्लेखवाली तीन ही रचनाएं हैं, जिनमें सर्व प्रथम संवत् १४९२ में रचित 'कुमारसंभववृत्ति' है। उस समय आपकी आयु ३२ वर्षके लगभगकी मानी जाय, तो जन्म समय १४६० के आसपासका होना संभव है। गुरुपरम्परा दीक्षा उन दिनों लघुवयमें ही अधिक होती थी, अतः आपकी दीक्षा सं. १४७०-७५ में होना संभव है। अपनी टीकाओंकी प्रशस्तियोंमें आपने जो गुरु परम्परा दी है, उसके अनुसार खरतरगच्छके जिनवल्लभसूरि, जो कि बड़े शास्त्रज्ञ और असाधारण विद्वान थे, उनकी परम्परामें For Private And Personal Use Only
SR No.521717
Book TitleJain_Satyaprakash 1955 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1955
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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