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म : २-3] तसा यत्र सेमी....अथ
स्या अक अई अलीनु बुतु बिन । जुह बहिन् दिसयव किन् हव वल ॥ अंत-श्लोक ३८ वां-अथोत्तर गोल दक्षिण गोले आह॥ रेखात एवोत्तरयाम्यगोलमध्ये चबाये भवतोऽत्र चक्रे ।
तथोत्तरस्यां दिशि दक्षिणस्यां भवति मानीति च राशिचक्रात् ॥३॥ बड़गच्छकी एक शाखा भटनेरमें थी, उसका बहुतसा हस्तलिखित ग्रन्थसंग्रह अनुपसंस्कृत लायब्रेरीमें है । मेघरत्नादिका इसी भटनेर शाखाका होना संभव है। इस शाखाकी कुछ प्रतियां हनुमानगढके एक व्यक्ति (गजधर )के यहां संग्रहीत पड़ी हैं, उनके अवलोकनसे संभव है उस्तरलाव यंत्रकी अन्य प्रति व उसके रचयिताके अन्य ग्रन्थका भी पता चले। प्रयत्न चाल है।
जैन हस्तलिखित ज्ञानभंडारोंकी मध्यकालमें बड़ी उन्नति हई, लाखों प्रतियां लिखवाई गई । हजारों ग्रन्थ निर्माण किये गये, पर शोक है कि मुसलमानों के साम्राज्यकालमें भी उनका जितना विनाश नहीं हुआ उतना अंग्रेजोंके शासनके समय हुआ। कुछ तो मुद्रण युगके प्रचलनके साथ हस्तलिखित प्रतियोंका पठन-पाठन समाप्त हो गया; कुछ शिक्षाकी कमीके कारण उसका महत्त्व भूला दिया गया, फलतः उस्तरलाव जैसे अपने विषयके एकमात्र ग्रन्थ भी आजतक अज्ञात अवस्थामें पडे हैं। अनूपसंस्कृत लायब्रेरीका भी कुछ वर्ष पूर्व बड़ा बेहाल था। सूचीमें केवल ५००० प्रतियां थी; बाकी बस्तोमें बंधी हुई ८-१० हजार प्रतियां यों ही अज्ञात अवस्थामें पडी थीं। इधर वर्तमान चीनके राजदूत पत्रिका बीकानेरमें आने पर इस अनुपम संग्रहकी सुव्यवस्था हुई जिससे सबको अज्ञात ग्रन्थों के प्रकाशनका पता चला है। इस संग्रहके सूचीपत्रके ६ भाग प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें अत्यधिक जैन ग्रन्थ भी विविध विषयोंमें हस्तलिखित हैं, पर जैन विभागमें जो ५००-६०० प्रतियां रखी हुई हैं उनकी कर्ताके नाम, रचनाकालसूचक सूची ही नहीं बनवाई है । ग्रन्थोंके नाम मात्रकी सूची है। यद्यपि मैंने सब प्रतियां कई बार देख ली हैं। इन प्रतियोंमें कई ऐसे जैन ग्रन्थोंकी प्रतियां भी है जिनकी दूसरी प्रति किसी भी जैन ज्ञानभंडारमें नहीं है, जिन पर फिर कभी प्रकाश डाला जायगा। जैन साहित्य बहुत विशाल है इसे भली भांति खोज कराके प्रकाशमें लाना जैन समाजके विद्वानोंका सर्व प्रथम कर्तव्य होना चाहिए।
परिशिष्ट उस्तरलाव यंत्रके संबंधमें विशेष पूछताछ करने पर अहमदाबाद के पंडित जितेन्द्रजी जेटली से ज्ञात हुआ कि Encyclopaedia Britanicca में इतना विशेष है, जो यंत्रके चित्रके साथ छपा है।
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