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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म : १] ભેજપુરકા જૈન મંદિર [ १७ गंभीरतापूर्वक देखनेका प्रयत्न ही कहां करते हैं ? तभी तो हमारी जैन संस्कृतिके भव्य भालको उज्जवल करनेवाले शताधिक प्रतीक अरक्षित-उपेक्षित दशामें पड़े हैं, अपना सौंदर्य अरण्यमें बिखेर कर भूमिसात् हो रहे हैं । सहृदय अन्वेषककी ये कब तक प्रतीक्षा करते रहेंगे? मैं इस निबंधमें एक ऐसे ही, शताब्दियोंसे उपेक्षित खंडहरकी कीर्तिगाथा सुनाने जा रहा हूं। ___ भोजपुरकी ओर- पुरातत्वके प्रति स्वाभाविक आकर्षणके कारण मध्यप्रदेशसे भोपाल आने पर प्राचीनतम खंडहर व शिल्प-भास्कर्यमूलक कलाकृतियोंकी गवेषणा करनेसे सांचोके उपरान्त भोजपुरका नाम भी कर्णगोचर हुआ और प्रमुख संचालककोंसे ज्ञात हुआ कि भोजपुरके अवशेष भोपालके खंडहरोंमें महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं । अतः उनका अन्वेषण नितान्त आवश्यक ही नहीं, अपितु अनिवार्य है। स्थानीय कलाकारों द्वारा मुझे प्रेरित किया गया कि बिना भोजपुर देखे भोपालके हार्दको समझा नहीं जा सकता। इसके संबंधमें विभिन्न प्रकारको किंवदन्तियां सुन चुका था। पर वहांके वनराजोंके प्रकोपसे भी मैं अपरिचित न था। भोपाल सरकारके सुयोग्य प्रधानमंत्री श्री डा ० शंकरदयालजी शर्माने मुझे आश्वस्त किया कि मैं भोजपुर अवश्य जाऊ । उचित सभी प्रकारकी व्यवस्था सरकार करेगी। चातुर्मास बाद ता. १०-१२-५३ को मैं तरुण बाबू घेवरचन्दजीके साथ अतीतकी ज्योतिके दर्शनार्थ पैदल चल पड़ा । प्रकृतिके प्रांगणमें-कलाकरका नैसर्गिक निखार प्रकृतिकी सुरम्य आभामें उद्दीपित होता है । भोजपुर इसका अपवाद नहीं। भोपालसे ओ बेदुल्लागंजके मार्ग पर मिसरोदसे कुछ आगे चिखलोदकी ओर एक शाखा फूटती है जिस पर लगभग ४ मोलसे कुछ अधिक जाने पर पुनः दाहिने हाथकी ओर मुडने पर जो कच्चा मार्ग है वही टेढी मेही पगडंडियोंसे होता गन्तव्य स्थान पर पहुंचता हुआ गोहरगंजकी ओर जाता है। चिरपोषित मनोकामना लिए उत्साहके साथ हम लोग आगे बढे जा रहे थे। मार्गकी विलक्षणता अपरिचित पथिकको लक्ष्यभ्रष्ट करनेवाली वृत्ताकार थी, उन पगडंडियोंको पार करते हुए, बंगरसियासे जो मार्ग जाता है वह यद्यपि विशाल वृक्षोंसे परिवेष्टित तो नही है किन्तु झाडी-झुरमुट इतने अधिक हैं कि दिनको भी एकाकी जानेका साहस संचित करना होगा । बांई और छोटीसी पहाडी और दाहिनी और कलियासोत है जो वेत्रवतीसे आ मिलता है। कहीं कहीं जनशून्य एकान्त भ्रमित कर सकता है। ज्यों ही आगे बढे त्यों ही बाई ओरकी पहाडकी एक दीवार पर दृष्टि पडी। गढ़े--गढ़ाए सुगठित प्रस्तर व्यवस्थितरूपसे अवस्थित थे, जो भित्तिका भव्यरूप धारण किये थे। इसकी चौडाई २० फीटसे कम न होगी। महाराजा भोजने इसे कालीयसोतको रोकनेको बनवाया था। एक स्थान पर बांध तोडनेका असफल प्रयास भी परिलक्षित हुआ। जंगलसे होता हुआ बांध कहीं कहीं मार्गसे इतना सटा है कि दिनको भी हिंस्र पशुओका मिल जाना असम्भव नहीं। छोटो सघन झाड़ियां जंगलसे कहीं अधिक भयप्रद प्रमाणित हो सकती है। और इस मार्गमें कोई व्यावसायिक गांव न पड़नेसे आवा For Private And Personal Use Only
SR No.521715
Book TitleJain_Satyaprakash 1954 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1954
Total Pages30
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size14 MB
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