SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. [ અનુસંધાન ટાઈટલ પેજ બીજાથી ચાલુ ] प्राप्त पत्रमें १०९९ से ११२३ तकके पद्य हैं जिसमें 'भगंदरनाशनो रसः दीपको रसः,' वाजीकरण औषधियोंका वर्णन १११९ श्लोक तक फिर चार श्लोकोंमें प्रशस्ति है । प्रति १७वीं शताब्दीकी लिखित प्रतीत होती है । पत्रसंख्याका अंक कट गया है। ग्रंथके अंतमें ग्रंथका नाम लिखा नहीं गया है। प्रशस्तिमें इसकी संज्ञा निबंध और इस ग्रंथमें ५ उन्मेष होनेका उल्लेख किया गया है। ग्रंथकी रचना सं. १५२८के मिगसर वदी ५ को हुई है। रणस्तंभदुर्गके शासक अल्लावद्दीन खिलजीके सब मंत्रियोंमें मुख्य धनेशकी पत्नी धर्मिणी के पुत्र सिंहने इस निबंधकी रचना की । प्रशस्ति इस प्रकार है प्रशस्ति यं प्रास्तताखिलानां वसनघनघनक्लेशहाराय पूतः, सूनुं तं श्रीधनाख्यो गुणगुणतुलिता श्रीर्यया धर्मिणिः सा । तस्य श्रीपोरवाड़ान्वयमुकुटमणेः सिंहसाधोः शुभेऽस्मिन् । ग्रन्थेनासत्यमार्गानुसरणचतुरः पंचमोन्मेष एषः असितदलतिथौ वा पंचमी के के गुरुमशुभदिने सौ खलचिकुलमहीपश्रीमदल्लावदीनप्रबलभुजसुरक्षे श्रीरणस्तंभ दुर्गे ॥ सकलसचिवमुख्य श्रोधनेशस्य सूनुः समकुरुत निबन्धं सिंहनामा प्रभुर्यः ॥ २१ ॥ वसुकरशरचंद्रे १५२८ वत्सरे रामानंदज्वलनशशि १३९३ मिते श्रीशके मासिमार्गे ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यावत् तपति दिनेशो यावत् स्यात् स्वर्धुनीनीरम् । यावन्मेरौ कनकं तिष्ठतु तावन्निबन्धोऽयम् ॥ ११२३॥ उ ॥ शुभं भवतु लेखक पाठकयोः ॥ उ ॥ ॥२०॥ ग्रन्थवर्यः समाप्तः ॥ २२॥ खोज की जानी आवश्यक है, जिससे ग्रंथका नाम और विषयों का धरमिणि - वाडूनाम्ना स्त्रीयुगलं मन्त्रिधनराजस्य । प्रथमोदरजौ सीहाश्रीपतिपुत्रौ च विख्यातौ ॥ १० ॥ इस ग्रंथकी पूर्ण प्रति पूरा परिचय मिल सके । धनराज - प्रबोधमालाकी प्रशस्ति में सिंहाका दशवें और ११वें श्लोकमें उल्लेख मिलता है । प्रशस्ति के अनुसार जिस समय प्रबोधमाला की रचना हुई, धनराजके धर्मिणी और वाडू दो पत्नियां थीं और धर्मिणीके सीहा और श्रीपति दो पुत्र थे । उन्हें कुलदीपक, राजमान्य, दानवीर और गुणाकर विशेषण दिये हैं For Private And Personal Use Only कुलदीपकौ द्वावपि राजमान्यौ, सुदातृतालक्षणलक्षिताशयौ । गुणाकरौ द्वावपि संघनायक धनाङ्गजौ भूवलयेन नन्दताम् ॥ ११ ॥
SR No.521713
Book TitleJain_Satyaprakash 1954 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1954
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy