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प्राप्त पत्रमें १०९९ से ११२३ तकके पद्य हैं जिसमें 'भगंदरनाशनो रसः दीपको रसः,' वाजीकरण औषधियोंका वर्णन १११९ श्लोक तक फिर चार श्लोकोंमें प्रशस्ति है । प्रति १७वीं शताब्दीकी लिखित प्रतीत होती है । पत्रसंख्याका अंक कट गया है। ग्रंथके अंतमें ग्रंथका नाम लिखा नहीं गया है। प्रशस्तिमें इसकी संज्ञा निबंध और इस ग्रंथमें ५ उन्मेष होनेका उल्लेख किया गया है। ग्रंथकी रचना सं. १५२८के मिगसर वदी ५ को हुई है। रणस्तंभदुर्गके शासक अल्लावद्दीन खिलजीके सब मंत्रियोंमें मुख्य धनेशकी पत्नी धर्मिणी के पुत्र सिंहने इस निबंधकी रचना की । प्रशस्ति इस प्रकार है
प्रशस्ति
यं प्रास्तताखिलानां वसनघनघनक्लेशहाराय पूतः,
सूनुं तं श्रीधनाख्यो गुणगुणतुलिता श्रीर्यया धर्मिणिः सा । तस्य श्रीपोरवाड़ान्वयमुकुटमणेः सिंहसाधोः शुभेऽस्मिन् । ग्रन्थेनासत्यमार्गानुसरणचतुरः पंचमोन्मेष एषः
असितदलतिथौ वा पंचमी के के गुरुमशुभदिने सौ
खलचिकुलमहीपश्रीमदल्लावदीनप्रबलभुजसुरक्षे श्रीरणस्तंभ दुर्गे ॥ सकलसचिवमुख्य श्रोधनेशस्य सूनुः समकुरुत निबन्धं सिंहनामा प्रभुर्यः ॥ २१ ॥ वसुकरशरचंद्रे १५२८ वत्सरे रामानंदज्वलनशशि
१३९३ मिते श्रीशके मासिमार्गे ॥
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यावत् तपति दिनेशो यावत् स्यात् स्वर्धुनीनीरम् । यावन्मेरौ कनकं तिष्ठतु तावन्निबन्धोऽयम् ॥ ११२३॥ उ ॥ शुभं भवतु लेखक पाठकयोः ॥ उ ॥
॥२०॥
ग्रन्थवर्यः समाप्तः ॥ २२॥
खोज की जानी आवश्यक है, जिससे ग्रंथका नाम और विषयों का
धरमिणि - वाडूनाम्ना स्त्रीयुगलं मन्त्रिधनराजस्य । प्रथमोदरजौ सीहाश्रीपतिपुत्रौ च विख्यातौ ॥ १० ॥
इस ग्रंथकी पूर्ण प्रति पूरा परिचय मिल सके ।
धनराज - प्रबोधमालाकी प्रशस्ति में सिंहाका दशवें और ११वें श्लोकमें उल्लेख मिलता है । प्रशस्ति के अनुसार जिस समय प्रबोधमाला की रचना हुई, धनराजके धर्मिणी और वाडू दो पत्नियां थीं और धर्मिणीके सीहा और श्रीपति दो पुत्र थे । उन्हें कुलदीपक, राजमान्य, दानवीर और गुणाकर विशेषण दिये हैं
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कुलदीपकौ द्वावपि राजमान्यौ, सुदातृतालक्षणलक्षिताशयौ । गुणाकरौ द्वावपि संघनायक धनाङ्गजौ भूवलयेन नन्दताम् ॥ ११ ॥