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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
—નવાં ભરાયેલાં બિબામાંના એક બિખના લેખ—
३२ - श्री अजितनाथप्रभुना बिंब विषेनो लेख
पुठे - वीरसं० २४७८ वर्षे माघ शु० ५ गुरौ श्रीचन्द्र सागरसूरिणाऽञ्जितमिदं श्रीअजितनाथबिंबमिति शुभम् ।
पलांठी नीचे - वीरसं० २४७८ वर्षे २००८ विक्रमार्के माघशुक्लपञ्चमी गुरौ श्रीचन्द्रप्रभासतीर्थे चन्द्रप्रभस्वामिप्रासादे श्रीदेवसुरतपागच्छसंरक्षकागमोद्धारकाचार्यसागरानन्दसूरीश पट्टघरसिद्धचक्राराधनः तीर्थोद्धारकाचार्यश्रीमच्चन्द्रसागरसूरिकृताञ्जनशलाकायां श्रीअजितनाथस्वामिबिंबं प्रभासपत्तनस्थ श्रेष्ठिदेवजीभाइसुत- अमरचन्द्रभार्याजमनाबाइसुत जेठा भ्रातुमघीपल्या हीराचन्द्र, प्रेमजीभाइ, मगनलाल, पानाचन्द्रेति चत्वारः पुत्राः तन्मध्ये पानाचन्द्रभार्या पानकुंवरसुत कान्तिलालस्तथा पुत्र्यस्तारामति-- कलावति-भद्रमणि - नयनबालादिपरिवारैः श्रीसंघ श्रेयोऽथेमञ्जितमिति शुभम् ॥ *
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आणाघर हो वाचकपद धार कि अमरसिन्धुर महिमा वरू ॥
ए उद्यम हो करतां मनरंग कि बच्छर आठ बोलावोया ।
[ अनुसंधान पृष्ठ २३६ थी थासु ] चढि चौमुख हो- चंदाप्रभु चंग कि, अजित सुमति संभव सही । भल दरसण हो करतां शुभ भाव कि जात्र पुण्य पामै सही ॥
कोठारी हो कुल मण्डण जाण कि अमरचंद चढती कला ।
भाई भल हो वृद्धिचंद्र सुजाण कि हीराचंद सुत तसु भला ॥ ७ ॥ सु० ॥
देवल भल हो दीपायो जेण कि देवभुवन सम दीपतो ।
अति ऊंचो हो सोहै श्रीकार क मोह मिथ्यामत जीपतौ ॥
भल लीधो हो लखमी नो लाह कि पुण्य भंडार भरावियौ ।
धमधोरी हो गावै गुणवंत कि जग जस पडर बजावियौ ॥ ८ ॥ सु० ॥
गच्छ खरतर हो गणधर गुणवंत कि हरखसुरीसर हितधरू ।
[वर्ष : १८
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प्रतिष्ठा हो कीधी सुप्रधान कि गुणीयण मिल गुण गावीया ॥ ९ ॥ सु० ॥ ए मिंदर हो रहो अचल आणंद कि थिर जिम सुरगिरि सालता । चिन्तामणि हो पूजेज्यो जाम कि अधिक वधेज्यो आसता ॥ सुप्रसन मन हो सेवो प्रभुपाय क त्या सुप्रसन्न जदा तदा । वो या घर हो सुख संपति धाम क वधज्यो मंगल मालिका
॥
१० ॥ सु० ॥ १ गुटके में अन्यत्र सूरतसे इन प्रतिमाजीके बम्बई आनेका सूचन 'सूरतथी भल साहिबा हो मंबुई बिंदर महाराज आया इहां आणंद सु सहुना सीधा काज ।
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