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२३६ ] શ્રી. જૈન સત્ય પ્રકાશ [ वर्ष : १८ निर्माण व प्रतिष्ठा होनेका उल्लेख है और गुटकेकी निम्नोक्त लेखनप्रशस्ति से सं. १८८८ में बम्बई में अमरसिंधुरजीका ११वां चातुर्मास चल रहा था, बतलाया गया है। इसलिए इस जिनालयकी प्रतिष्ठा संवत् १८८५ में होनी चाहिए । पुष्पिका यह है :- " संवत् १८८८ वर्षे मिती फागुण सुदि ९ रवौ श्री मंबुई बिंदरे एकादशमी चतुर्मासी कृता । लिखत वाचक अमरसिंधुरगणि पं. रूपचंद पं. अणदावाचनार्थं श्रीबृहत्खरतर भट्टारकगच्छे श्रीजिनकुशलसूरि शाखायां । "
( मोरा साहिब हो श्रीशीतलनाथक पहनी । ) सुखदायक हो चिन्तामणि साम कि मंबुईपुर मनरंग नमो
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दरसण कर हो हो नयणानंदकि दुख दोहग दूरे गमो । पावडीया हो तिहां सात प्रसिद्ध कि देवल चढतां दीपता ।
दोय पासै हो प्रतिहार प्रधान कि जुगतै अरिंगण जीपता ॥ १ ॥ सु० ॥
उपासरे हो अतिशोभ उदार कि खरतरगच्छ चढती कला ।
सदगुरुजी हो श्रीकुशलसुरिंद कि पूजीजै पगला भला ।
पटधारी हो प्रणमी गुरु पायक लायक गुरु गुण दीपता ।
भवि बोधक हो शोधक क्रम जाण कि पंचेन्द्रिय विष जीपता ॥ २ ॥ सु० ॥
दिस दोए हो पावड़िय प्रधान कि सुंदर अति सोहामणी ।
चढि चौंपे हो लहो परमाणंद कि देवल छवि सोहावणी ।
क्षराजा हो चिन्तामणि जाणि क चितनी चिन्ता ते हरै ।
गुणवंता हो गोरल बड़वी कि भोग सुजस लखमी भरै ॥ ३ ॥ सु० ॥ मनगमती हो भमतीय भमंत कि मंदिर शिखर सोहांबणो ।
दंडे हो सोहै श्रीकार कि कलश कंचन रलियामणो ।
बिहु पासै हो अति उन्नत जाण कि धमशाला दोषै भली ।
धम कारण हो करवाने काज क देख्यां पूगै मन रली ॥ ४ ॥ सु० ॥ मूलनायक हो राजे महाराज कि श्रीचिन्तामणि सुखकरू । उपगारी हो त्रिभुवन आधार कि दरसण दुख दोहग हरू | तेवीसम हो जग तारक जाणकि दोहरा दुरति निकंदणो । पुण्य योगे हो लायक सुविलासक दरसण लहय राजिंद नौ ॥ ५ ॥ सु० ॥ विवेकै हो मिलि चौविह संघ कि विनय सहित वंदन करै ।
पूजा विध हो ग्रह समय उदार कि करतां पुष्य दशा भरै ॥
पदमावति हो पूरै मन आस कि श्याम भैख सुप्रसन सदा । आराध्या हो आवै अधिक आणंद कि प्रघल दीयै सुख संपदा ॥ ६ ॥ सु० ॥ : अनुसंधान पृष्ठ : २३८ ]
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