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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir અંક: ૧૧ ] છેડકે શનિ જિનાલય સંબધી ઉલેખ [૨૧૫ विक्कमे बच्छरे वारहट्ठावने, महु बहुल पंचमी दिवस किर सोवने । सोभन देवराय कारिय पयट्टविहि, अप्पणा मज्झि हेऊण गुरु महानिहि ॥ ४६॥ धम्मपुरु नट्टपुरु कितु जीवहपुरं, किन्नरासाणपुरु किन्नु चच्चरपुरं । किनु विहि संघपुरु किनु दाणहपुरं, तहि महे संकियं एम खेडप्पुरं ॥ ४७ ॥" ये शांतिनाथ विधिचैत्य सं० १३८३ पर्यन्त तो पूज्यमान वंद्यमान था यह बात 'गुर्वावली' के उल्लेखसे स्पष्ट है। श्रीजिनकुशलसूरिजी बाहड़मेरसे जालोर जाते समय खेड़स्थित स्वपूर्वज कारित श्रीशांतिनाथ और समियाणा (सिवाना )के शान्तिनाथ जिनालयकी वंदना की। इसमें वाहित्रिक उद्धरणके लिए "राज्यभार धुराको धारण करनेमें धौ रेयके समान लिखा है।" उद्धरणके पुत्र कुलधर संभवतः जालौर भी रहने लगे थे उनके स्वर्णगिरि-जाबालिपुरमें श्रीमहावीरदेव विधिचैत्य निर्माण कराने व सं० १२९९ मिति प्रथमाश्विन वदि २ के दिन दीक्षा लेने व कुलतिलक मुनि नामसे प्रसिद्ध होनेका महत्त्वपूर्ण उल्लेख 'गुर्वावली में पाया जाता है। इसमें कुलधरके पुत्र भोजराजा और उसके पुत्र सलखगसिंहका भी उल्लेख है। सं० १५४६ में इसी देशके मंत्रीश्वर राजसिंहके लिखाई हुई स्वर्णाक्षरी कल्पसूत्रकी ४८ श्लोकवाली प्रशस्ति उद्धरणके वंशपरंपरा एवं वंशधरोंके सुकृत्यों पर अच्छा प्रकाश डालती है। लेखविस्तार भयसे हम उसका सार नहीं दे रहे हैं, पर यह प्रशस्ति 'देशविरति धर्माराधक समाज' द्वारा प्रकाशित " पुस्तक प्रशस्ति संग्रह "के पृष्ठ ४६ में प्रकाशित है, उसकी ओर पाठकोंका ध्यान आकर्षित कर देना आवश्यक समझते हैं। खरतरगच्छकी बेगड़शाखाके अन्य साहित्यके अनुशीलनसे और भी बहुतसी ज्ञातव्य बातें प्रकाशमें आ सकती हैं। समय मिला तो कभी स्वतंत्र प्रकाश डालेंगे। इस शाखाके स्थापक जिनेश्वरसूरि उद्धरणके वंशज ही थे, और भी अनेक आचार्य हुए हैं जिनका निर्देश आगे किया जा चुका है। खेड़, जालौर, समियाना आदि स्थानोके प्राचीन जैन मंदिर प्राप्त नहीं हैं । मुसलमानों के आक्रमणादिसे ही उनका विनाश हो जाना प्रतीत होता है। जालौरके कान्हडदेका यवनोंसे महान् संघर्ष हुआ, इतिहासप्रसिद्ध है। संभव है इसी समय जालौर तन्निकटवर्ती देवायतनोंकी अधिक परिमाणमें ध्वंसलीला चली हो। खेटकका नाम लवणखेटक 'गुर्वावली में मिलता है इस संबन्धमें विचार करने पर मालूम हुआ कि खेडके निकट ही पंचपदा नामक स्थान है जहां आज भी नमकका उत्पादन होता है। यहांका नमक विशेष प्रकारका है।हमारा ख्याल है या तो खेड़ विशालनगरमें वसा हो या यहां भी उस समय नमक बनाया जाता रहा होगा। खेड़. संज्ञक अन्य स्थानोंसे पृथक्त्व बतानेके लिए ही इसे लवणखेटक लिखा, और प्रसिद्धि प्राप्त हुइ विदित होती है । For Private And Personal Use Only
SR No.521701
Book TitleJain_Satyaprakash 1953 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1953
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size13 MB
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