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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ ] શ્રી. જૈન સત્ય પ્રકાશ [ वर्ष : १८ तीर्थाधिराज सम्मेतशिखरकी बन्दना करने अग्रसर हो सर्वप्रथम अचल बड़ पहुंचे, वेदिका के ऊपर तीन चैत्योंकी वंदना करके गिरिराज पर २० तीर्थंकरोंकी निर्वाणभूमिके स्तूपोंको नमन कर वापस लौटे। ऋजुवालिका नदी पर आकर वीरप्रभुकी केवलज्ञानभूमि की स्पर्शना कर गिराराज से पांच योजन मरहट ( ? ) आये; जहां श्री ऋषभदेवके प्रासादको नमन किया । कोपन चैत्यकी वन्दना कर वहांसे दस कोस राजगृह नगर आये। यहां १ वैभारगिरि, २ उदयगिरि ३ विपुलगिरि ४ हेम (स्वर्ण) गिरि, ५ वां रत्नगिरि पहाड़ हैं। वीरवसति (वर्तमान सोन भंडार), निर्माल्यकूप जिसे नागका देवल कहते हैं - शालिभद्रका कुंआ था, देखा । ३२ चैत्यको नमन कर रोहणिया की गुफा देखी । ११ गणधरोंकी चरणपादुकाओंका वंदन कर सात उष्ण और सात शीतल जलके कुण्ड देखे । नगर में एक मन्दिर और पौषधशाला थी । वीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत प्रभुकी जन्मभूमि- राजगृहसे चार कोस चलकर बड़गांम (नालंदा) आये । यहां श्रीमहावीरस्वामी के मंदिर में भक्ति की । गुणसिल चैत्य में भगवान महावीर समवसृत थे । नालंदा पाड़ा में प्रभु ने चौदह चातुर्मास किये थे। यहांसे पावापुरी तीन कोस है । सोलह प्रहर तक देशन दे भगवंता यहां निर्वाण हुआ । तालाबके बीच जिनेश्वरको वन्दना कर बिहार आये । यह वही तुंगिया नगरीथी जहांके श्रावकों की प्रशंसा स्वयं भगवानने श्रीमुखसे की थी । वहां से क्षत्रियकुण्ड आये, जहां श्रीमहावीरस्वामीका जन्म हुआ था । माहणकुंड यहांसे तीन कोस पर विद्यमान है जहां प्रभुने देवानंदाकी कुक्षिमें अवतरित हो स्थानको पवित्र किया था। दो जिनालयोंको नमन कर आध कोस ऊपर जन्मभूमि स्थानमें जिनगुण स्तवना की । क्षत्रियकुण्ड ६ कोस काकंदी है, जहां नवें तीर्थंकर श्रीसुविधिनाथस्वामीका जन्म हुआ । भद्रानंदन धन्ना अणगार भी यहींके थे जिनकी प्रभुने प्रशंसा की थी। यहांसे २५ कोस चंपानगर है, वासुपूज्य भगवानकी जन्मभूमिमें चैत्यवंदना कर कुंभकारवेन (1) आये । भागलपुर एक कोस है, जहां खमणवसही थी । वासुपूज्यजीके चरणोंके अनुसरण कर अंबाईवन- (आम्रवन ?) में उतरे फिर राजगृह वापस आये। सहसाराम में भावना भाकर बनारस, प्रयाग आये। यहांसे १६ कोस कोसांबी है जहां महावीरस्वामीके छमासी तपका पारणा हुआ । कड़माणिक और खमणाचैत्य उत्तम स्थान है। वहांसे सौरीपुर आकर नेमिनाथस्वामीको वन्दना कर अब्राहमवादमें जिनेश्वर के चरण भेटे । भूहड़ में पार्श्वनाथ और दिल्ली में महावीर - स्वामीको वंदन किया । श्रीजिनप्रभसूरिने यहां ब्राह्मण, काजी, मुल्ला आदि अनेक मिथ्यात्वियोंको हराकर व जिनप्रतिमा द्वारा धर्मलाभ दिलाकर बादशाहको रंजित किया था। वहांसे ७ कोस हस्तिनापुर आये, शांतिनाथ, कुंथुनाथ और अरनाथ प्रभुके जन्मस्थानमें तीन स्तूपों व अंबाई व मल्लिनाथस्वामीके चैव्योंकी बन्दना कर रेवाड़ी होकर सकुशल अलवर लौटे। इस प्रकार [ देखो : अनुसंधान टाइटल पृष्ठ : ३ ] For Private And Personal Use Only
SR No.521697
Book TitleJain_Satyaprakash 1953 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1953
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size13 MB
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