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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ४ : ४-५ ] રાણકપુર....આદિના કૃતિય લેખ [ १ हमारी जानकारीमें उदयपुरके यति अनूप ऋषिजीने मेवाड़के कतिपय स्थानोंके लेख संग्रहित किये हैं। एवं आगराके लेखक श्रीनंदलालजी लोढाने मांडवगढ, धार आदि कई स्थानोंके लेखों की नकलें कर रखी हैं। तपागच्छके २-४ मुनियोंने भी प्रतिमा लेखोंका अच्छा संग्रह किया जानने में आया है, जिनमेंसे एक मुनिश्रीने हजारों धातुप्रतिमाओं के लेख लिये हैं, सुना है । पर अभी उनके कार्य प्रत्यक्षमें देखनेका अवसर प्राप्त नहीं हुआ। हमारा नम्र अनुरोध है कि अपने संग्रहको शीघ्र ही प्रकाशित कर इतिहासप्रेमी व शोधक व्यक्तियोंको सुगमता उपस्थित करें 1 बड़े ही खेद की बात है कि अखिल भारतवर्षीय जैन तीर्थोकी प्रधान संस्था सेठ आणंदजी कल्याणजी पेढीने कुछ वर्ष पूर्व श्री साराभाइ नवाचकी नियुक्ति कर हजारों रुपये खरच कर अनेक स्थानों के मंदिरों का विवरण संग्रहित किया था और सैंकड़ों फोटो लिये गये व सैंकड़ो लेखोंकी नकलें ली गइ पर आज तक उस सामग्री अप्रकाशित अवस्था में पड़ी है। पेढीके कुशल व्यवस्थापक श्री कस्तूरभाइका ध्यान उस सामग्री के शीघ्र प्रकाशनकी ओर आकर्षित किया जाता है । जैन प्रतिमा लेखसंग्रह से जैन इतिहास ही नहीं, भारतीय इतिहासमें भी नया प्रकाश मिलता है, अतः उनका बडा महत्त्व है । इनके संग्रहका प्रयत्न बडे जोरोंसे होना चाहिये । पेढी चाहे तो तुरंत करवा सकती है। हमारे मुनिगण भी इस ओर थोडासा ध्यान दें तो बिना किसी खरचके गांव गांव के लेख संग्रहित सहज में ही हो सकता है। मुनि दर्शनविजयजीने आदिके जतिरिक्त इस ओर मुनियोंका ध्यान कम ही गया है, पर है यह बहुत आवश्यक; अतः संग्रहके लिये निवेदन है । पेढी जैसी संस्था चाहे तो भारत सरकारके पुरातत्त्व विभागकी मदद से भी बडी सुगमतासे काम हो सकता है । म्युझियम आदि सरकारी समस्त संग्रहालयोंकि जैन लेख तो पत्रव्यवहार करने पर बिना खरच पुरातत्व विभाग व क्युरेटरोंसे संग्रहित किये जा सकते हैं । एवं रिपोर्टों, गेझेटियर्स, एपिग्राफिका इंडिका आदिमें प्रकाशित जैन लेखों का संग्रह भी अनुभवी विद्वानको दे दिया जाय तो तुरंत हो सकता है। दिगंबर प्रतिमा लेखोंका ऐसा संग्रह श्री. नाथुराम प्रेमजीने करवाके दो भागमें प्रकाशित करवाया है। जैनशासनकी सेवामें निरत आचार्य व विद्वान मुनि स्वयं इस परमआवश्यक कार्यको करें व पेढी आदिसे करवाय तो सर्वोत्तम । उनके प्रभाव से द्रव्यादिकी कभी भी नहीं रहेगी । इतना प्रासंगिक निवेदनके अनन्तर जोधपुरवाली हस्तलिखित पत्रोंक । प्रतिके अप्रकाशित लेख दिये जा रहे हैं, इन्हें मिलान करके देखें । For Private And Personal Use Only
SR No.521696
Book TitleJain_Satyaprakash 1953 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1953
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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