________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१८६) જૈન સત્ય પ્રકાશ
[ वर्ष : १७ असाढ़ कृष्णा ६ को गिरिराज पर चढ़ा था और उसी दिन युगादिदेवके समक्ष यशोभद्र एवं देवभद्र नामक क्षुल्लकोंको दीक्षा दी थी। सं. १३८१ के वैशाख वदि ६ को पाटणमें यशोभद्र और देवभद्रको सूरिजीने बड़ी दीक्षा दी थी। गुर्वावलीके इस उल्लेखसे जयसोमके गुरुपर्वक्रममें दिये हुए जन्म एवं दीक्षा संवत गलत सिद्ध होते हैं। संभवतः आपका जन्म १३७२ के लगभगमें हुआ।
२. आपको विद्याध्ययन करानेवाले अमियचंद्रगणि, गुर्वावलीमें उल्लिखित अमृतचंद है जिनकी दीक्षा सं. १३५५ के ज्येष्ठ वदि १० को जालोरमें जिनचंद्रसूरिजीके करकमलोंसे हुई थी। सं. १३७५ में नागौरसे हस्तिनापुर व मथुरा महातीर्थका संघ निकाला तब आप सूरिजीके साथ थे। सं. १३९० जे. सु. ६ देयवरमें जिनपद्मसूरिजीने (अपने आचार्य पद प्राप्तिके दिन ही) आपको वाचनाचार्य पद दिया था। सं. १३९३ के चैत्र शुक्ला १५ को आबू तीर्थयात्राके लिये संघ निकाला था उसमें जिनपद्मसूरिजीके आप साथ थे।
३. परिवर्ती पट्टावलियोंसे ज्ञात होता है कि आपका स्वर्गवास सं. १४१४ में खंभातमें हुआ था । जयसोमके गुरुपर्वक्रमानुसार आपका गोत्र छाजहड था एवं पदोत्सवकारक हाजी शाहका गोत्र राखेचा था।
४. जिस कोसवाणेमें आपका जन्म हुआ था श्रीजिनकुशलसूरिजीके गुरु श्रीजिनचंद्रसूरिजीका वहां सं. १३७६ में स्वर्गवास हुआ था और अग्निसंस्कारके स्थान पर स्तूप बनाया गया था। यह स्थान जोधपुर राज्यमें है । अभी उस स्तूपका पता नहीं चला।
५. आप श्रीजिनलब्धिसूरिजीके पट्ट पर स्थापित किये गये थे। उनका संक्षिप्त परिचय दे देना भी यहां आवश्यक है।
खरतरगच्छकी पट्टावलियोंमें तो आपके संबंधमें इतना लिखा मिलता है कि सं. १४०० के आ. सु. १ आचार्यपद मिला । पदोत्सव पाटणनिवासी नवलखा ईश्वरने किया । तरुणप्रभसूरिने सूरिमंत्र दिया । ओपका गोत्र नवलखा था। सं. १४०६ में नागोरमें स्वर्गवासी हुए । आपका दीक्षानाम लब्धिनिधान संभव है । युगप्रधान गुर्वावलीमें अनेकवार इस नामसे उल्लेख आता है। आपके रचित कई ग्रन्थ और स्तोत्र भी प्राप्त है।
[ मूल विवाहलउ काव्य अगले अंकमें प्रगट होगा ]
Kh
For Private And Personal Use Only