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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [अनुपान 200 २ था यातु] विद्वान था। साहसाब राजाका राजवैद्य और चरकका प्रसिद्ध टीकाकार हरिचन्द्र इसका पूर्व पुरुष था। विश्वकोषकी प्रस्तावनामें ग्रन्थकर्त्ताने हरिचन्द्रसे प्रारंभ कर अपने सब पूर्वजोंका वर्णन किया है। इसने विश्वप्रकाशका निर्माणसाल ई. ११११ (शक १०३३) उस ग्रन्थके अंतमें दिया है। इसका विरचित साहसाङ्क चरितकाव्य भी था ऐसा निर्देश विश्वप्रकाशकी प्रस्तावनामें मिलता है। विश्वप्रकाश-यह नानार्थ शब्दोंका कोष है। इसमें अमरकोषके सदृश अन्तिम वर्णानुक्रमसे शब्दोंकी योजना है। हेमचंद्रने अपने ग्रन्थमें इसका निर्देश किया है। इस कोषका महत्त्व अभी भी संस्कृत साहित्यके विद्वानोंमें है। शब्दभेदप्रकाश-यह विश्वप्रकाशका परिशिष्ट ही है। इसके निर्देश शब्दभेद, वकार मेद, ऊष्ममेद और लिङ्गभेद है। इस शब्दभेदप्रकाश पर ई.१५९८ में ज्ञानविमलगणि द्वारा विरचित टीका प्रसिद्ध है। उपर्युक्त उद्धरणसे स्पष्ट है कि ये १२ वीं सदी के जैनेतर विद्वान हैं व इनके रचित दो ही ग्रन्थ हैं। लिङ्गभेद नाममाला व शब्दभेद (प्रकाश) वास्तवमें शब्दप्रभेदसे ही अध्यायों के नाम हैं अतः स्वतंत्र ग्रन्थ नहीं है। २ चोखम्बा संस्कृत सीरीजसे यह प्रकाशिति हो चुका है। ગ્ર થસ્વીકાર १. षड्दर्शनसमुच्चय-: श्री मिटि श्री समितिबसिसिपा० શ્રી વિજયજ'ખૂરિજી મ પ્રકાશક : મુક્તાબાઈ નાનમદિરાભાઈ. મૂલ્ય : રૂપિયા ત્રશુ. २. श्री तत्वत गिधी-सावणा-40 श्रीवियसरि भ. aan: २ गुण 3. नित्य स्मरण स्तोत्राहि सह-सा : श्रीवियसरि भ. satas: ઉપર મુજબ નવી મદદ ૨૫૧] . પૂજ્ય મુનિરાજ શ્રી દશ"નવિજયજી મ. (ત્રિપુટી )ના ઉપદેશથી શ્રી જૈનસંધ मारियावी (44) For Private And Personal Use Only
SR No.521665
Book TitleJain_Satyaprakash 1950 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1950
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size12 MB
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