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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२७१ અને ૧૨ ] શ્રી કેશરીયાનીની એક અપ્રસિદ્ધ લાવાણી सुणो अरज पृथीनाथजी सेहेर धुलेव मजार । कियो धिगांनो दुष्टने सीघ्र चलो जन तार ॥२॥ आये तुरत माहाराजजी करवा जन संभाल । दा घोडे दोनुं चढे मेरु अर प्रतिपाल ॥३॥ मिलको रूप आपे कियो दिस दिस फोज हजार । मार मार चोतरफ भई लडाई त्यार ॥ ४ ॥ (छंद-भुजंगी) कुकु कूकू कहे कोक बांण सणण सणण तिर तरगक बाण । धूबके धुबके वहे नालगोला जिसा कर्कसा जमरा नेण डोला ॥१॥ केते अंगपे सत्ररा घाव लागे केते मारिथि कंपते दूर भागे । केते दंत तरन लेवेव रांक केते थरथरे सेस होवे न रांक ॥२॥ केते रसुल, ईलल्ला, ईलल्ला, पुकारे किते दोन हेके खूदा संभारे । किते नाथकुं केसराषू न माने केते नाथकुं जागति जोत जाने ॥३॥ सदासीव घाव लागौ अटारों फूनि भाउ जसवंत दोनू संहारे । बडो कोष जांनि सबे भो(फो)ज भाजी हुइ केसरानाथरी जित वाजी ॥ ४ ॥ सदासीव घाव लागो अटारों फूनि भाउ जसवंत दोनू संहारे ।। बडो कोप जानि यह फोज भाजी हुई केसर्या नाथरी जित वाजी ॥५॥ ( दुहो) याविध कलियुग जगजना तायों के जिनराज । दीपविजय कविराजकुं महिर करो महाराज ॥ १ ॥ (छंद - मोतीदाम ) तुहि अडरिष तुहि नवनिध तुहि मनवछत इछतसिध । तुहि सिरदार तुंहि किरतार तुहि सरणागत दीनदयाल ॥२॥ तुंहि घटकुंभ तुहि गविधेन तुहि सुरवृच्छ तुहि मम सेन । तुहि दिक्षणावर्त दायक देव तुहि विसराम तुंही वड सेव ॥३॥ तुहि मम प्राण आधार जरूर तुहि मम इच्छत दायक नूर। तेहि मम भूप तुहि पातसाह तुंह मम ऋद्ध भंडारि अगाह ॥४॥ For Private And Personal Use Only
SR No.521646
Book TitleJain_Satyaprakash 1948 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1948
Total Pages24
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size11 MB
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