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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
जबरदस्त दिवस सात में लापसी बाहिर तत्र किनें । अंस अंसभर व्रण रहाए संघलोकने दरसन दिनौ ॥ ८ ॥ फिर सुपनेमें द्रव्य दिखायो संघ मिले देहरो किनों । मध्य बिराजे ऋषभ तखतपर कलियुगमें यों जस लिनौं ॥ ९ ॥
(दुहो)
संवत अठारे सतसउसमें भाउ सदासीवराय । कोयो धींगागो दुष्टनें भाखुं वरण वनाय ॥ १ ॥
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[ वर्ष १४
( छंद - मोतीदाम )
सदासोवराव चिंते मन एह लूटे बहु धाम जमीं पर जेह । भिलां पतिनाथ धूलेव कहाय लखोलख द्रव्य भंडार सुनाय ॥ २ ॥ जावां अब लूटण गांम धूलेव ग्रही सब माल ग्रही ततखेव ।
आयो निअ फोज लेई दलगाज तोपां दोय साथ लीए बहु साज ॥ ३ ॥ कंपू दोय लार लिए फिरंगांग उठीं भर साथ लिए कोक बांण । तब बहु लोक कहे माहाराज नहि इहीं कारज कृत अकाज ॥ ४ ॥ ए तो बहु झाजल देव कहाय रहे नहीं लाज तिहारि काय | तवां फिर बोले सदासीव भूप ग्रहुं सब चीज अबां चढ चूंप ॥ ५ ॥ इस कह आवत दुष्ट करूर कियो निज राणो नाथ हजूर । राख्यो नहि नाथ सब निज राण गयो मचकित मन गिलांण ॥ ६ ॥ तथा मन चिंते भंडार बुलाय मीठे व वन बोले सबै ललचाय ।
लेई संघ आय मुकां मम जार कियो तब कुंच लेई सब कार ॥ ७ ॥ करे तब गांम पूकार पुकार भंडारि सबे य पूकार पूकार । करो अब बाहर नाथ दयाल गयो कहां आज गरीबनवाज । चो अब बाहर राखण लाज (पंचपदी ) ॥ ८ ॥
( दुहो )
उण समे कोठ शेठको वाहण तारण काज ।
गये हुते माहाराजजी मेहं गए वहां गाज ॥ १ ॥