SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir બેગસ બિલ (ભિખારી ધારા)ના સંબંધમાં પૂ. . મ. શ્રી. વિદ્યાવિજ્યજીએ ગ્વાલિયર રાજસભાના 'ત્રીને લખેલ પત્ર - ગ્વાલિયર રાજ્યની ધારાસભામાં એક બેગ બિલ (ભિખારી ધારા) રજુ થયેલ છે. આ મિલ જૈન સાધુ ગ્રાના આચારને બેટી રીતે અસર ન કરે તે સંબંધમાં પટd કરવા માટે શિવપુરીથી પૂ. મુ. મ. શ્રી. વિદ્યાવિજયજી મહારાજે વાલિયર રાજસભાના મંત્રી ઉપર જે પત્ર લુખ્યા છે તેની નકલ આગરાથી પ્રસિદ્ધ થતા “Aવેતાંબર જૈન “અડવ ડિકના al. १-१-४८ना मा ५२था लत शन महा मावामा भाव छ. -तत्र आशीर्वाद । मैंने सुना है कि राजसभा में किसी महाशय ने बाम्बे प्रेसीडन्सी का अनुकरण करके बेगसे बिल पेश किया है । इसका उद्देश्य कुछ भी हो; परन्तु उस उद्देश्य से सम्बन्ध नहीं रखनेवाले साधुओं के साथ अन्याय न हो, इसका ध्यान रखना आवश्यक है । मैं जैन साधुओं की तरफ सभा का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। संसार के भिक्षावृत्ति करनेवाले सब साधुओं से जन साधुओं के आचार विचार और यम नियम भिन्न प्रकार के हैं। (१) जैन साध मिक्षा से ही निर्वाह करते हैं, परन्तु वे अपनी भिक्षा के लिये किसी भी गृहस्थ को या समाज को तकलीफ नहीं देते हैं। (२) जैन साध स्वयं रसोई नहीं बना सकते हैं। क्योंकि वे न पैसा टका रखते हैं , न पदार्थों का संग्रह रखते हैं और न बिना उबाला पानी और अग्नि आदि का उपयोग ही कर सकते हैं। (३ , उन्हीं गृहस्थी के घरों में वे भिक्षा लेने जाते हैं जो उनके प्रति पूर्ण श्रद्धा रखते हैं और उनकी भिक्षा के नियमों को अच्छी तरह से जानते हैं । (४) किसी भी गृहस्थ के यहां से भिक्षा भी उतनी ही लेते हैं. जिससे कि गृहस्थों को किसी प्रकार का संकोच न हो और फिर बनाने की जरूरत न पडे । सारांश यह है कि एक गृहस्थ के यहां से थोडी सी ही भिक्षा लेते हैं। इसी प्रकार और भी अनेक गृहस्थों के यहां से थोडी २ भिक्षा लेकर वे अपना उदर-निर्वाह करते हैं। आवश्यकता से अधिक न तो वे ले सकते हैं, न बचाकर ही रख सकते हैं और न उस समय के बाद उसका उपयोग ही कर सकते हैं। यह बात केवल भिक्षा के लिये ही नहीं है किन्तु जल के सम्बन्ध में भी जैन साधुओं का कठोर नियम है । वें उबला हुआ जल भी उतना ही ले सकते हैं, जो दस बारह घन्टे तक उपयोग में आ सके । इस अवधि के बाद यदि जल की आवश्यकता हुई तो फिर दूसरी बार का उबला हुआ जल लेने के लिये गृहस्थ के यहां जाते हैं। कहने का सारांश यह है कि जल का भी तो वे एक दिन का पूरा संग्रह नहीं रख सकते हैं। [ अनुसयान-252ील पाने] For Private And Personal Use Only
SR No.521639
Book TitleJain_Satyaprakash 1948 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1948
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy