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३१४] શ્રી જન સત્ય પ્રકાશ
[ વર્ષ ૧૨ आवा संकट-समये पण जो आपणे संगठित थवा तैयार न होंईए तो तो पछी आपणे ऊजळा भविष्यनी आशा ज शी रीते राखी शकीऐ?
जावाल, तळाजा के श्री केसरियाजी तीर्थ जेवा प्रसंगो ए आपणी संघशक्तिनी कसोंटीना प्रसंगों बन्या छे.एवा प्रसंगे आपणु संघ-शरीर केटलं सबल के निर्बल छे,एनुं निदान अचूकपणे जाणी शकाय. १०-२० वर्षना नजीकना भविष्यमा ज जैन संघ-जैन समाज उपर जे कई वीती गयु छे ते जोतां आपणुं समाज-शरीर दुर्बल थई गयुं छे अने दिवसे दिवसे वधु जर्जरित बनतुं जाय छे ए दीवा जेतुं स्पष्ट छे. आपणी आ वर्तमान हालत अने आपणो भव्य भूतकाळ ए बेनो विचार करीए छीए त्यारे क्षणभर मनमा थई आवे छे-शुं आपणे एज जैन महाप्रजाना संतानो छीए के जेमना पूर्वजोए मोंटां मोटां देवालयो अने धर्मालयो ऊभां कर्या हता, मोटा मोटां राज्योर्नु संचालन कयु हतुं, मोटा मोटा रणांगणोमां वीर हाक गजवी विजय वरमाळ पहेरी हती, अने राष्ट्रना दरके दरेक क्षेत्रमा पोतानुं वर्चस्व दाखवी पोतानी बुद्धि अने शक्तिनो सौ कोईने लाभ आप्यो हतो ?
आपणु तीर्थ एटले आपणु पोतार्नु ज एक अंग, ए अंग उपर घा उपर धा थता होय अने छतां आपणु दिल ठंडी ताकात दर्शाववा तैयार न थाय के ए घानी सामे बंड पोकारी न ऊठे अने ऊलटुं आपणे शून्यचित्त जेवा बनी जईए त्यारे नथी लागतु के आपणे निष्क्रिय, निश्चेतन अने हीनसत्त्व बनी रह्या छोए ?
श्री केसरियाजी तीर्थ अंगे ऊभो थयेलो प्रश्न ए केवळ केसरियाजी तीर्थ पूरतो.ज छे एम रखे आपणे मानी लईए ! आजे आ प्रश्न आवी पड्यो तो काले बीजो नहीं आवी पडे-आपणा बीजा तीर्थ उपर पण आफत नहीं आवी पडे-एनी शी खातरी : अमने तो लागे ज छे के आजे जो आनो ताकात पूर्वक प्रतीकार नहीं करीए तो आवती काल आथीय वधु घेरी आफत ऊतर्या वगर नथी रहेवानी. जे शरीर उपर एक रोगे हुमलों को एना उपर बीजा रोगोने हुमलो करवानुसाव आसान छे ए रोजना अनुभवनी वात आपणे कां भूलीए ! पण आमा दोष रोगनो नहीं पण कमजोर शरीरनो ज गणाय. हवे ए घडी भावी लागी छे ज्यारे आपणे ए वातनों फसलो करवोज पडवानो छे के आपणा दुर्बल बनेला संघ--शरीरने आपणे वधु दुर्बल बनाववा मागीए छीए के ए दुर्बलताने खंखेरी नाखीने ए संघ-शरीरने सशक्त अने बलवान बनाववा मागीए छीए. श्री केसरियाजी तीर्थ जेवा प्रश्नोए ए दुर्बलता फगावी देवानो आपणने सुयोग मेळवी आप्यो छे, ए सुयोगनो लाभ लेवानु आपणे न भूलीए अने प्रसंग ज्यारे आवी ज पडयो छे त्यारे एवी शक्ति दाखववानु न चूकीए के जेथी भविष्यमा बोजी
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