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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८८ ] www.kobatirth.org m શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ W [ वर्ष १२ पर मंडप में वजादंडके नीचे क्रियाएं की जाती हैं और यद्यपि पुराना ध्वजादंड खड़ा रहने दिया जाता है फिर भी उत्सव रस्म ध्वजादंड चढानेका ही है । ई - जब कभी ध्वजादंड प्रस्थापित किया गया है न तो वेतांबरी न दिगम्बरी अपनी अपनी धार्मिक क्रियाएं करने से रोके गये साबित हुए हैं। ३- इन निष्कर्षोंको नजर के सामने रखते हुवे, जिनको श्रीमान् महाराणा साहब स्वीकार करते हैं यह साफ जाहिर है कि महकमा देवस्थान, जो पूजा करनेवालोंके ट्रस्टी महाराणाकी ओर से मंदिरका नियन्त्रण व प्रबंध करता है, उसको यह देखना होगा कि सब पूजा करनेवालों को अपनी २ रीतिके अनुसार विना किसी रोक टोकके पूजा करने दी जाएइसके साथ २ श्रीमान महाराणा साहब बहादुरने ता० २३ मई १९४७ के विधानमें ऐलान किया है कि तमाम देवस्थान मंदिर व संस्थाएं तथा उनकी जायदाद मय ऋषभदेवजीके मंदिरके देवस्थान निधिको ट्रस्टी कायम करके उसके नाम ट्रांसफर करदी गई है । ४ - रिपोर्ट और सिफारिशोंको जो कि उसमें है, दृष्टिमें रखते हुवे महाराणा साहबने खुद होकर आगे लिये निम्नानुसार हुक्म जारी किया है - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.521633
Book TitleJain_Satyaprakash 1947 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1947
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size22 MB
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