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[१र्ष १२
श्री रैन सत्य आश उदैपुरके वजीरेआजम । उदैपुर के बड़े न्याकाधिकारी (Chief Justice) उदैपुरके शिक्षणमंत्री। मेवाड विधान सभाके सभापति । चार ख्यातकीर्ति हिंन्दु शिक्षणशास्त्री। मेवाड बाहरके चार हिन्दु, जो अपनी आम सेवा के कारण ख्यात हों। मेवाड विधान सभाने चुने हुए दो सभ्य । उमरावोंको छोडकर मेवाड के जागीरदारोंने चुना हुआ एक सभ्य । मेवाड के माफीदारोंने चुना हुआ एक सभ्य । और
नाथद्वारा और कांकरोलीके गोस्वामी हर तीसरे साल फेरबदलीसे (Alternatively)। (२) पहेली वार, अपने अधिकारके नाते जो (देवस्थाननिधि) सभ्य होते हैं उनको छोड
कर अन्य सभ्योंकी आजीवन नियुक्ति श्रीजी करेंगे । और किसी भी सभ्यके स्वर्गवास या इस्तीफा देनेके समय, सभ्यको जो जगह खाली पडेगी उसी प्रकार
का नया सभ्य, प्रसंगके मुताबिक, चुना जायगा या दाखिल किया जायगा। (३) निधिके दो उपसभापति रहेंगे। (४) सभ्य हर तीसरे साल एक अध्यक्ष ( Chairman ) को चुनेंगे, जो निधिका मुख्य
व्यवस्थापक बनेका और सभापति और उपसभापतियों की अनुपस्थितिमें निधिकी सभाका का सभापतिपद संभालेगा । पहेले समयके लिये श्रीजी सभ्यों में से
एक को अध्यक्ष नियुक्त करेंगे। (५) निधिका उद्देश्य सफल बनानेके लिये देवस्थाननिधि को आवश्यकीय, खास और
प्रासंगिक सब अधिकार रहेंगे । और वह अपने फंडों को उसे उचित मालूम हो उस प्रकार अमानतों, जमोन, व्यापार और औद्योगिक कार्यों में रोक सकेगा और उसमें परिवर्तन भी कर सकेगा। बडी अदालत ( High Court ) की सम्मतिसे देवस्थाननिधि (निम्न कार्यों के लिये ) आवश्यक कानुन बनायेगा - (अ) उसका कार्य व्यवस्थित बनानेके लिये (ब) निधिके लिये विधान तैयार करनेके लिये (क) संस्थाएं, सम्पत्ति और फंडोंकी व्यवस्था और बंदोवस्तके लिये कानून बनाने
के लिये (ड) प्रासंगिक सब बावतोंके लिये;
और उन सबमें सुधार करनेके लिये । (७) इस विधानके नियमों की हदमें रहे कर, निधि की योग्य व्यवस्था के लिये
आवश्यक हुकम और सूचनायें बड़ी अदालत दे सकेगी।
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