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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
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कोहो माणो माया लोभो तह चेव पंचमो मोहो । एए निज्जरिऊणं वच्चसि अइरामरं ठाणं इय नाऊण असारे संसारे दुलहं च मणुअत्तं । तह करि जिणवरधम्मं जह सिद्धिं लहसि अचिरेण ॥ १२ ॥ रे जीव ! पाव ! निधिण ! दुलहं लहिऊग माणुस जम्मं । जं न कुणसि जिणधम्मं हा ! पच्छा तं विसूरिहिसि ॥ १३ ॥ जं न कओ अन्नभवे धम्मो रे जीव ! सुन्दरो विउलो । अणुवसि तेण पुरओ दुक्खाईं अणन्तसंसारे न परो करेइ दुक्खं नइ सुक्खं कोइ कस्सई देइ | जं पुण दुचरिउ सुचरिउ परिणमइ पुराणयं कम्मं ॥ १५ ॥ जइ पइससि पायालं अडवी नईइ महासमुद्दम्मि | पु· वकयाउन छुट्टसि अप्पा घायसे जइ वि जं चैव कयं तं चैव भुंजसे नत्थि इत्थ संदेहो । अकयं कत्तो पावसि जइ विसमो देवरायेण किं सससि सुससि सोससि दीहं नीसससि वहसि धम्मेण विणा सुक्खं कत्तो रे जीव ! पाविहिसि मेण विणा जइ चिन्तियाई लम्भन्ति जीव ! सुक्खाई । तातिय विसयले को वि नहु दुक्खिओ हुज्जा ॥ १९ ॥ धम्मेण कुलपसूई घम्मेण य दिव्वरुवसंपत्ती । धम्मेण घणसमिद्धी धम्मेण सुवित्थडा कित्ती धम्मो मंगलमडलं उस हम उलं च सवदुक्खाणं । घम्मो बलमवि विउलं धम्मो ताणं च सरणं च किं जपिएण बहुणा जं जं दीसइ समग्गजियलोए । इंदियमणोभिरामं तं तं धम्मष्फलं स 'जं जं नरदेवेसुं नारयतिरिएस होज दुक्खाई । इंदियमणोअहिं तं [ ] पावप्फलं स आरंभसयाई जो करेr रिद्धीए कारणे मूढो । एक न कुणइ धम्मं जेण बला हुंति रिद्धीओ
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१. मा आयो श्रीडेमन्यन्द्रज्ञानभं हिर ૧૬૧માં છે.
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[ वर्ष १२
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संतावं ।
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તાડપત્રીય ડૉ नं. १७१, अति नं.