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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir અંક 8 ] ક્યા કાલકાચા દેશદ્રોહી થે ७ -- अष्टमीशशिसमभाल ! गतिजितबालमराल !। भविकपयोजरवे ! प्रमुदितसर्वकवे ! रे जिन जिन ! ॥२५॥ ॥शार्दूलविक्रीडितवृत्त ॥ इत्थं निर्भरभक्तियुक्तमनसा नीतः स्तुतेर्गोचरं, श्रीमन्नाभिनराधिराजतनयो देवाधिदेवो मुदा । श्रेयः श्रीमुनियुक्तियुक्तविजयश्रीवाचकग्रामणी शिष्येणाद्भुतसंपदं प्रतिदिनं देयादभीष्टं सताम् ॥२६॥ इति श्रीविसलनगराधीश-श्रीआदिनाथस्तवनं पं. श्रीदेवविजयगणिकृतम् । गुजरात पाटणना गिरधरभाई हेमचंदना प्राचीन हस्तलिखित पुस्तकोना संग्रहमांश्री ॥ शासनसम्राट विजयनेमिसूरिशिष्यविजयपद्मसूरिए सं. १९९९ना जेठ वदी १४ गुरुवारे गुजरात पाटणना जिनगुणगायक (भोजक) मोहन गिरधरपासे महुवाबंदरे महावीरदेवप्रासादे लखाव्यु ॥ महावीरस्वामिप्रासादे । महुवाबंदर । शुभं भवतु ॥ [પૂજ્ય ઉપાધ્યાય શ્રીવિનયવિજયજી મહારાજ રચિત શાંતસુધારસ કાવ્ય કે મહાકવિ જયદેવવિરચિત ગીતગોવિંદની એકાદ મનરમ પદાવલીને અનુભવ કરાવતી પં શ્રીદેવવિજયજી ગણિની આ કૃતિ વાચકને કાવ્યમાધુર્યને જરૂર અનુભવ કરાવશે, એવી આશા છે.] क्या कालकाचार्य देशद्रोही थे ? लेखक:-पूज्य मुनिमहाराज श्रीकांतिसागरजी वर्तमान संसारके मानव-समाजका मस्तिष्क इस प्रकारका बन चुका है कि विज्ञानकी कसौटी पर कसे जानेके बाद जो सत्यांश निकलता है उसे ही उसके मस्तिष्कमें स्थान मिलता है । कहनेका तात्पर्य यह है कि वर्तमान मनुष्य-समाज संसारको प्रत्येक वस्तुको वैज्ञानिक दृष्टिसे देखना चाहता है, परन्तु फिर भी ऐसो ऐसी गलतियां भारतवर्षके विद्वानों द्वारा हो रही हैं जिनको एकाएक क्षमा नहीं किया जा सकता । भारतवर्षका राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास सींगपूर्ण उपस्थित नहीं, परन्तु एतद्विषयक साधनसामग्री प्रचुर प्रमाणमें यत्र तत्र सर्वत्र उपलब्ध होती है। उन सभीका विभिन्न दृष्टिको!से अध्ययन कर निचोड़ निकालना, यह महान अध्ययन, मनन और अध्यवसायके बाद ही संभव है । साथ ही ऐसे महाभारत कार्यों के लिए सांप्रदायिक असहिष्णुतासे परे रहना प्रत्येक व्यक्तिके लिए आवश्यक ही नहीं पर अनिवार्य है। क्योंकि भारतका सच्चा इतिहास उस समयकी जनता-मानवजातिका इतिहास है । भारतमें वसनेवाली मानवजाति पृथक् पृथक धर्नामें विभाजित है । आर्यावर्तके पूर्व इतिवृत्त और साहित्य हमें स्पष्ट रूपेण For Private And Personal Use Only
SR No.521627
Book TitleJain_Satyaprakash 1946 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1946
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size17 MB
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