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लेखकः-श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा १. "श्री जैन सत्य प्रकाश” के गत अंक (क्रमांक १३३) में प्रो. हीरालाल रसिकदास कापडियाने आत्मोपदेश सज्झायके कर्ता विनयप्रभमूरिके लिए ३ व्यक्तिओंमेंसे किसीका अनुमान किया है। पर उनमेंसे खरतरगच्छचाले विनयप्रभ तो संभव नहीं, क्योंकि उनकी भाषा भी प्राचीन थी और उन्हें मूरिपद भी नहीं था। नं. १-२ दोनों अभिन्न हैं, अतः उक्त सज्ज्ञाय के कर्ता पौर्णमिक विनयप्रभसूरि ही संभव है।
२. उसी अंकमें 'शोयलनी नव वाड' लेखमें मु. श्री ज्ञानविजयजीने नं. २ के कर्ता जिनहर्षको वस्तुणलचरित्र के कर्ता एवं उस कृतिका रचनाकाल सं. १५२९ लिखा है, यह दोनों गलत है। वास्तवमें 'सत्यविजयरास' के कर्ता खरतरगच्छीय कवि जिनहर्षने इसकी रचना सं. १७२९ में की है । “ सूर" से ७ स्पष्ट है, मुनिश्रीने ५ समझकर यह गलती की है।
નવી મદદ
૧૧) પૂ. આ. મ. શ્રી. વિજયલબ્ધિસૂરીશ્વરજીના સદુપદેશથી લાલબાગ જૈન ઉપાશ્રય,
भुंम४. ૧૫) પૂ.પં.મ.શ્રી હેમાગરજી ગણુિના સદુપદેશથી શ્રો. કરમચંદ પૌષધશાળા અંધેરી (મુંબઈ) ૧૧) પૂ. મુ. મ. શ્રી. પ્રબે ધસાગરજીના સદુપદેશથા શેઠ મંગળદાસ ભુરાભાઈ, કપડવંજ, १०) पू. भा. भ. श्री. विय-यायसरिन। सपशथा, न संध, धोता. ૫) પૂ. ૫. મ. શ્રી. ચંદ્રવિજય જીના સદુપદેશથી, શ્રી. નમિનાથ જૈન ઉપાશ્રય, મુંબઈ २) ५. मा. म. श्री. सागरना सपश्था, नय, सास.
आ सीने। अमे भाभार मानीसे छी..
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&ાળધર્મ- મહુવામાં આસો વદ ૭ ને ગુરુવારના રોજ રાતના પૂ. આ. ભ. શ્રી. વિજયલાવણ્યસૂરિજી મહારાજના શિષ્ય પૂ. મુ. મ. શ્રી જયંતવિજયજી મહારાજ ૮૧ વષ ની વૃદ્ધ વયે કાળધર્મ પામ્યા.
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