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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २८६ ] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ ( उ ) ઈમ પાસ જિનવર વિશ્વ સુખકર કરતમહુર દિનકરા, સંવત સંયમ ઉધિવસુઈ × સ્તન્યે પાસ શખેશ્વરા; વિજયમાનસૂરીસ રાજે ઝુવિજય કાવિદ્ર વા, તસ સીસ હરખે માન જંપે, સફળ સધ મંગલ કર ૫ ૪૮ ૫ અંત અષ્ટકમ સ્તવન સપૂર્ણ कविचक्रवर्ती श्रीपालरचिव शतार्थी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेखक: श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा जैन जातियों में पोरवाड जातिके लिये ' प्रज्ञाप्रकर्ष प्राग्वाटे' की प्रसिद्धि सोलह आने सत्य है । पर वर्तमान में इस जातिवालोंके शिक्षणकी कर्म के कारण उनका अपने अतीत गौरवको प्रकाशित करनेकी ओर लक्ष्य नहीं गया । स्व. मुदि हिमांशुविजयजीका पोवाड जाति के इतिहास के प्रकाशनका विचार सुना था, पर असमयमें ही उनका स्वर्गवास होजाने से वह मनोरथ सफल न हो सका । 'पूर्वकालान ओसवाल ग्रन्थकार ?' शीर्षक लेख लिखने के समय प्राग्वाट एवं श्रीमाल जातिके ग्रन्थकारोंके सम्बन्धमें फिर कभी प्रकाश डालनेकी मनोभावना मैंने व्यक्त की थी, पर उसके लिखनेका सुअवसर अभी प्राप्त नहीं हो सका । उस सुयोगकी प्रतीक्षा में हूं। आज तो उस जाति के कविचक्रवर्ती श्रीपाल की एक महत्त्वपूर्ण कृति जो कि अद्यावधि साहित्यसंसार में सर्वथा अज्ञात है, उसका परिचय इस लेख द्वारा कराया जा रहा है । यह कृति है 'शतार्थी' जिसमें एक श्लोक के १०० अर्थ करके कविने अपनी विद्वत्प्रतिभाका सफल परिचय दिया है । यद्यपि इस कृतिका नामनिर्देश मैंने अपने 'जैन अनेकार्थ साहित्य "" लेखमें किया था, पर उस समय इसके रचयिता कविचक्रवर्ती श्रीपाल ही हैं इसका निर्णय नहीं होनेके कारण अज्ञातकतुक रूपमें ही उसका उल्लेख किया गया था । पीछे से अपने संग्रहके लिए इस अलभ्य ग्रन्थकी प्रतिलिपी कराने के विचारसे प्रतिको रतनगढ जाकर लाने एवं भलीभांति अवलोकन करने पर उक्त निर्णय हो सका । जिस पुस्तकालयकी यह प्रति है उसके सूचीपत्र में इसका नाम 'सत्यार्थी' लिखा था अतः नया नाम देख उस प्रतिको देखने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई और वास्तविक नाम ' शतार्थी' ज्ञात २. प्र० 'जन सिद्धान्त भास्कर वर्ष ८, अंक १ । [ वर्ष ११ × મૂળ ગુટકામાં ૧૭૧૭ લખ્યું છે. પણ ઉદ્ધિથી સાતને એ રીતે ૧૭૭૭ થાય. આ સ્તવન પાટનિવાસી ભાજક શ્રી પ્રાચીન હસ્તલિખિત ગ્રંથામાંના એક ગુટકામાંથી ઉતાયું છે. १. प्र० ' ओसवाल नवयुवक' वर्ष ८, अंक ७-८ एवं 'ओसवाल' वर्ष ६, अंक ६ । For Private And Personal Use Only અંક પણ લેવાય છે; ગિરધરભાઈ હેમચંદના
SR No.521623
Book TitleJain_Satyaprakash 1946 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1946
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size18 MB
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