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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निर्भान्त तत्त्वालोक [दान-शोल-तप-भावनादिधार्मिकविशिष्टव्याख्यानरूपो निबन्धः ] प्रणेता-पूज्य मुनिमहाराज श्रीवल्लभविजयजो. [क्रमांक-१२७ से क्रमशः] काक (कौआ) में गहेरा कालापन है और हंस में स्वभाव से ही उजलापन है, दोनों की गंभीरता में बहुत कुछ अंतर है और दोनोंकी बोलीमें बडा मारी अन्तर है, फिर भी जहां यह विचार किया जाय कि कौन काक है और कौन हंस है, हे मित्र, उस देशको नमस्कार है। पहेलो कहा जा चुका है कि धर्म सर्वोत्कृष्ट मंगल है अर्थात् मोक्षसाधक है और वह अहिंसारूप है, संयमरूप है और तपःस्वरूप है; यह दशवैकालिक सूत्र में कहा गया है, इसी तरह भगवानने धर्मके विशेष लक्षणको उत्तराध्ययन सूत्र में भी कहा है किज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप ये मोक्ष के मार्ग हैं, अर्थात् धर्म हैं। उत्तराध्ययनका मूल पाठ इस तरह है नाणं च दंसणं चैव चरितं च तवो तहा। एसमग्गुति पत्रत्तो जिणेहिं वरदंसिहि ॥ -उत्तराध्ययन सूत्र, अ० २८, गा. २ यहां ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप को मोक्षमार्ग कहा है अर्थात् धर्म कहा है। धर्मका यह लक्षण भी पूर्वोक्त ज्ञान, दर्शन, चारित्र अथवा श्रुत और चारित्र के अनुकूल ही है, क्योंकि तप चारित्र का ही भेद है, किन्तु कर्मोंके क्षय करने में तप का स्थान सब से ऊंचा है, अर्थात् प्रधान है यह जनाने के लिए हो इस गाथामें चारित्र से पृथक् तप को कहा है। टीकाकारने भी इसी तरह लिखा है कि इह च चारित्रभेदत्वेऽपि तपसः पृथगुपादानं अस्यैव क्षपणं प्रति असाधारणहेतुत्वमुपदर्शयितुम् ॥ ___ अतः सिद्ध हुआ कि सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र ही वीतरागकी आज्ञा (धर्म) है अथवा संक्षेप से ये ही श्रुत और चारित्र के नामसे कहे जाते हैं, इससे भिन्न अल्पज्ञकल्पित संवर-निर्जरा रूप लक्षण व्यभिचरित होनेसे वास्तविक लक्षण नहीं है । धर्मका विषय अति गहन है, शास्त्रकारोंने अपने अपने यथाबुद्धिबलोदयसे धर्मका लक्षण अनेक प्रकारसे किया है, किन्तु धर्मके सभी लक्षणोंका समन्वय सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र में हो जाता है। यह दूसरी बात है कि किसीने धर्म के लक्षण में विशेष कुशलता दर्शाने के लिये लघुता ग्रहण की और किसीने शब्दाडम्बर को ही पसन्द किया; किन्तु धर्मके वास्तविक For Private And Personal Use Only
SR No.521623
Book TitleJain_Satyaprakash 1946 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1946
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size18 MB
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