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- અંક ૪] જીવકે કર્મબન્ધ ઔર માલકા અનાદિત્વ . ૧૧૧
आ रहा है, परंतु वैसे कर्मबन्धक कारणों के मिट जानेसे और मुक्तिके अनुकूल कर्मनाशककारणोंके पैदा हो जानेसे प्रवाह रूपसे अनादि उस कर्मसंयोगका अंत हो जाता है। .
तार्किक परिभाषामें इसको प्रध्वंसाभाव कहा जाता है जो सदसत् अर्थात् पूर्वमें था बादमें मिट गया । भव्य जीवोंका कर्मसंयोग अनादि सांत माना जाना है। इस दूसरे भंग की विवेचना भी सुसंगत बुद्धिगम्य होती है। सदासे ऊगनेवाला बोज भून जाने पर फिर नहीं ऊगता। इस ढंगके उदाहरण इस भंगको समझनेमें उपयोगी होते हैं।
. प्रवाह रूपसे अनादि कर्म . प्रवाह रूपसे अनादि कर्मसंयोग के मिट जाने पर जीव मुक्त हो जाता है। जीवकी यह अवस्था साइया अपजवसिया मानी जाती है। हर एक मुक्त जीवकी मुक्ति होनेकी आदि होती है पर इस मुक्तताका कभी अंत नहीं होता । क्योंकि मुक्त हुए बाद कर्मबन्धनका कोई हेतु बाकी नहीं रह जाता । यह बात अभ्रान्त रूपसे कही जा सकती है, कि "छिने मूले कुतः शाखा."
सादि सांत मंग यह भंग जिसकी आदि भी है, और अंत भी है, ऐसी अवस्थामें लागु होता है। सम्यकत्वसे पतित जीवके मिथ्यात्वकी आदि भी है, और अर्द्धपुद्गल परावर्त्त प्रमाण कालमें अवश्य ही मुक्ति प्राप्त होगी। उस समय उस मिथ्यात्वका अंत भी हो जायगा। शास्त्रीय परिभाषामें इसे साइया सपज्जवसिया कहा गया है। माइया अपज्जवसिया और साइया सपज्जवसिया भंगोंमें तार्किक परिभाषांके अत्यन्ताभाव और अन्योन्याभाव लागु होते हैं।
__ मुक्त जीवोंकी मुक्ति यदि आदि वाली और अनंत मानी जातो है, तो क्या कोई ऐसा समय भी था, जब मुक्तिमार्ग हो नहीं था ? इसके जवाब में प्रतिमुक्तव्यक्तिकी अपेक्षा मुक्तिको आदि है, परंतु समूहरूपसे मुक्त जीवोंकी विचारणामें अनंतकालीन मुक्तिके प्रवाहको हमें नहीं भूलना चाहिए और वह मुक्तिका प्रवाह अनंत कालसे प्रस्तुत है। अतः मुक्तिगार्ग किसी समय नहीं था, ऐसा नहीं हो सकता । मुक्त जीव स्वयं सादि अनंत भंग में स्थित हैं, और मुक्तिका मार्ग, प्रवाहरूपसे अनादि अनंत भंगमें ।
अनादि बंध या मुक्ति? " यदि स्थिर चित्तसे इसका विचार किया जाय तो यह निश्चितरूपसे कहा जा सकता है, कि प्रवाहरूपसे बंध अनादि है, और मुक्ति भी अनादि ही है। यह एक ऐसी समस्या है, जिसको स्थूल बुद्धिसे सोचने पर कुछ उलझनसी पैदा होगी। जैसे किः-जो बना है वह बिगड़ेगा, और जो बना नहीं वह बिगड़ेगा भी नहीं। जो आया है वह जावेगा, और जो आया नहीं वह जायगा भी नहीं। जिसकी आदि है उसका अंत भी है, जिसकी आदि नहीं,
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