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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[ वर्ष ११ इतिवृत्तकी जानकारीका अभाव हो कारण है। इसका वास्तविक वर्णन कनकसोमरचित स्तवनमें प्राप्त है जो इस लेखके साथ प्रकाशित हो रहा है।
४. मन्दिरोंका विनाश हमारे ख्यालसे सं. १६८३ के लगभग हुआ होगा। उस समय नगरकोट पर जहाँगीर के हुकमसे अलपखाने क्यामखां के साथ घमासान युद्ध किया था, लूट खसोट भी हुई थी। इसका विस्तृत वर्णन हमारे संग्रहके अलफखांके रासा एवं पैडीमें पाया जाता है । अलपखांका पुत्र दौलतखां यहांका सूबेदार रहा था इसका भी उल्लेख ऊक्त रासेमें है।
श्री नगरकोटचैत्यपरिपाटी (सं. १४९७) देस जलंधर भत्तिभरे वंदिसु जिणवर चंद । ठामि ठामि कउतिग कलिय विहसिय तरु बहु कंद
॥१॥ पगि पगि सीतल विमल जल सीयल वाय पयार । गोपाचल सिरि संतिजिण सयलसंति सुहकार
॥२॥ विसमा मारग घाट सवे विसम गंग पयाल । सवालाख पचय सिहरे निम्मल नीर विसाल
॥३॥ बाणगंग बहु विमल जल वहइजि बारह मास । गढ मढ मंदिर वावि सर दीसइ देव निवास
||४|| नीला अइगरुआ तरव विहसिय वेलि अपार । दोसइ बहुपरि फूल फल विकसिइ भार अढार
॥५॥ इय विसमइ गढ किंगडइ ए हूं चडिओ चमकंत। राय सुसरमा हिमगिरि आणी मूरति कंत
॥६॥ एक राति प्रासाद वर अंबाई किय चंग । तिह थिर थापिय आदि जिण दिनि दिनि हुइ उछरंग
॥७॥ आलिग वसही वंदियइ ए मणिमय बिंब चउवीस । धन्न मुहूरत धन्न दिण धन्न वरस धन्न मास
॥८॥ रायविहारह वीर जिण निम्मल कंचण काय । निम्मिय देवल अइविमल रूपचंद सिरि राय
॥९॥ सिरियमाल घिरिया भवणि पूजउ जिणवर पास । आदिनाथ चउथइ भवणि पणमिय पूरिय आस
॥१०॥ धवलउ ऊचउ पंचमउ ए खरतर तणउ प्रासाद । सोलसमउ सिरि सति जिण दीठइ हुइ आणंद
॥११॥ आज मणोरह सवि फलिय आज जनम सुपवित्त । निम्मल निम्मिय अज्ज मए दसणनाणचरित्त
॥१२॥
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