SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शेठ शांतिदासके मन्दिर सम्बन्धी फरमानेका समय लेखकः-श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा "श्री जैन सत्य प्रकाश के क्रमांक ९८ में मुनिराज न्यायविजयजीका “ केटलांक महत्त्वनां फरमान-पत्रो' शीर्षक लेख छपा है। उसमें श्रीकृष्णलाल मोहनलाल झवेरी सम्पादित ५ फरमान-पत्रोंका अनुवाद प्रकाशित किया गया है। उन फरमानोंमेंसे नं. ४ वाला फरमान शेठ शांतिदासकै बनवाये हुए जैन मंदिरको औरंगजेब (जब कि वह अहमदावादका सूवेदार हुआ होगा) ने मस्जिद बना डाली थी, उसे सम्राट शाहजहांने पुन: जैन मन्दिरके रूपमें ब्यबस्थित करके शेठ शान्तिदासके सुपर्द करनेका आदेश देनेके लिये दिया है। उक्त फरमानका समय मुनिजी एवं श्रीकृष्णलाल झवेरीने हि. सन १०८१ बतलाया है, पर वह सर्वथा अशुद्ध है, अतः इस लेखमें उसके वास्तविक समय पर प्रकाश डाला जाता है, ताकि अन्य कोई सजन उक्त लेखके भ्रान्त उल्लेखका पिष्टपेषण न कर बैठे। उक्त फरमानका संवत् हि. सन १०८१ तो निम्न दो कारणोंसे असंभव है १. यह फरमान सम्राट शाहजहांने दिया था जिसकी मृत्यु हि. सन १०८१ के ६ वर्ष पूर्व ही हि. सन १०७५ में हो चुकी थी। और हि. सन १०६८ में औरंगजेबने शासनसूत्र ले लिया थां । अतः फरमानका समय सन १०६८ से पूर्व ही निश्चित है। २. फरमानमें मंदिर शेठ शांतिदासको सुपर्द करनेका कहा गया है, पर हि.सन १०८१ में वे भी जीवित नहीं थे। यद्यपि शेठ शांतिदास के स्वर्गका निश्चित समय अभी तक मेरे अवलोकनमें नहीं आया, फिर भी अध्यात्म-ज्ञान-प्रसारक-मंडल पादरासे प्रकाशित “जैन ऐतिहासिक रासमाला" में फरमान नं. २ हि. सन १०६९ का (सम्राट औरंगजेबके दिये हुएका) अनुवाद प्रकाशित है उसमें लिखा है कि सम्राटको शेठ शांतिदासके पुत्र लक्ष्मीचन्द्रने कामदारोंकी मारफत अरजी भेजो। इससे शांतिदासजी उससे पूर्व स्वर्गवासी हो चुके ज्ञात होते हैं। अतएव फरमानका समय १०६८ हिजरी सनसे पूर्वका ही निश्चित होता है। अब उसके वास्तविक समयका निश्चय करते हैं यह फरमान श्रीकृष्णलाल झवेरीने ही पहलेपहल सम्पादित किया हो यह बात नहीं है। उससे बहुत वर्ष पूर्व और मुनिराज न्यायविजयजीके लेखसे तो ३१ वर्ष पूर्व श्रीयुत मोहनलाल द. देसाईने अपने सम्पादित “जैन ऐतिहासिक रासमाला" के पृष्ठ ३० में इसी फरमानका अनुवाद प्रकाशित किया है, जिसमें इसका समय हि. सन १०५८ छपा है, और वही इसका वास्तविक समय है। पता नहीं श्रीकृष्लाल झवेरीने इतनी बड़ी भूल कैसे की ? For Private And Personal use only
SR No.521612
Book TitleJain_Satyaprakash 1945 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1945
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy