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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७४] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [ વર્ષ ૧૦ कनिंघमकी रिपोर्ट तथा विज्ञप्ति त्रिवेणिकी भूमिकामें शक. १४१३ छपा है। परंतु सं. १५६६ और शक सं. १४१३ का समन्वय नहीं बैठता । सं. १५६६ में शक सं. १४३१ होना चाहिये, इनका अन्तर १३५ वर्षका होता है। कदाचित् १४१३ छापेकी अशुद्धि हो । १४३१ के स्थानमें १४१३ छप गया प्रतीत होता है। __ कांगडा नगरमें सबसे प्राचीन मंदिर इन्द्रेश्वरका है जिसे राजा इन्द्रचन्द्रने वनवाया था। यह राजा सं. १०८५ और १०८८ में जीवित होगा क्योंकि यह काश्मीरके राजा अनन्तका समकालीन था। मंदिरके अंदर तो केवल शिवलिङ्ग है परंतु इसके बाहर ड्योढीमें बहुतसी मूर्तियां हैं जिनमें दो जैन मूर्तियां सबसे प्राचीन हैं। एक तो वृषभलाञ्छन आदिनाथ भगवान्की बैठी प्रतिमा है जिस पर आठ पंक्तिका एक लेख है। दूसरी मूर्ति भी पद्मासनमें बैठी हुई जिन प्रतिमा है। इसकी गद्दी पर दो भुजावाली स्त्रीकी और एक हाथीकी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। ये प्रतिमाएं ड्योढीकी दीवारमें बडी मजबूतीके साथ लगाई गई हैं। इनका मंदिरसे कोई संबन्ध प्रतीत नहीं देता। किसी अन्य स्थानसे लाकर यहां लगाई गई हैं। इनके अतिरिक्त एक जैन लेख बैजनाथके मंदिरमें भी विद्यमान है जो नगरकोटसे २३ मौल पूर्वकी ओर है । जिस स्थान पर यह मंदिर बना है उसका प्राचीन नाम कीरग्राम था। बैजनाक या वैद्यनाथके मंदिरकी पिछली दीवारमें बाहरकी ओर बहुतसे देवालय हैं । उनके बीच वाले देवालयमें सूर्यकी मूर्ति स्थापित है। परंतु जिस गदी पर सूर्यदेव विराजमान हैं, वह असलमें महावीर भगवानकी गद्दी होगी क्योंकि उस पर एक लेख उत्कीर्ण है जिसमें बतलाया है कि इस जिनमूर्तिकी प्रतिष्ठा सं. १२९६ में देवभद्रसूरि द्वारा हुई थी। यद्यपि इस लेखका बैजनाथके मंदिरसे कोई संबन्ध नहीं तथापि इससे यह बात निर्विवाद सिद्ध होती है कि उक्त संवत्में कीरग्राममें एक जिनमंदिर बना था । - कांगडा प्रान्तके जैन अवशेषोंका उपर्युक्त वर्णन गवर्मिन्ट द्वारा प्रकाशित पुस्तकोंके आधार पर किया गया है। आजसे आठ-दस बरस पहले लाहौर म्यूजियमके क्यूरेटर खर्गीय डा. के. एन. सीतारामने त्रिंगतदेशका भ्रमण किया था और बहुतसे अन्य जैन अवशेषोंका खोज लगाया था। उन्होंने एक दो चौबीसियों, अनेक पृथक् २ जिनमूर्तियों और मंदिरोंके अवशेष देखे । कई जैन मूर्ति और मंदिरोंको हिंदुओंने अपना लिया है । जैसे-बैजनाथ पपरोलाके रेलवे स्टेशन और डाक बंगलाके दर्मियान गणपतिका एक मंदिर है। डाक्टर साहिबका कहना था कि वास्तवमें वह जैन मंदिर था । (क्रमशः) ६. देखिये परिशिष्ट । '. For Private And Personal Use Only
SR No.521611
Book TitleJain_Satyaprakash 1945 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1945
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size18 MB
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