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१६४] - શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[वष १० श्वेताम्बर भंडारोंमें एक धारणीकी अनेक प्रतियां पाई जाती हैं जिसका नाम है (आर्य-) वसुधारा धारणी। जैन ग्रन्थावली (पृ. ३६७ )में स्पष्ट लिखा है कि यह वसुधारा किसी बौद्ध आचार्यको रचना है। पंजाबके पांच भंडारोंमें ही इसकी नौ प्रतियां मिली हैं। जैन भंडारोंमें बौद्ध ग्रन्थोंका मिलना आश्चर्यकी बात नहीं। आश्चर्य यह है कि वसुधाराधारणोकी, जो प्रत्यक्ष बौद्ध रचना है, जैनोंमें पूजा क्योंकर होने लगी। जैनधर्ममें निवृत्ति प्रधान है । जैन लोग वीतराग द्वारा प्रतिपादित निवृत्ति मार्ग पर चलने वाले भिक्षु समुदायके उपासक हैं। ऐसी दशामें मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र आदिमें उनको रुचि और श्रद्धा नहीं हो सकती। यूं तो प्राचीन जैन साहित्यमें मन्त्र तन्त्रके उल्लेख विद्यमान हैं, परंतु स्वार्थसिद्धिके लिये उनका प्रयोग निषिद्ध है। ऐसा प्रतीत होता है कि वैदिक और बौद्ध मन्त्रसे प्रभावित होकर जैनोंने भी इनको अपनाया और अपने मन्तव्योंका रंग देकर भैरवपद्मावती-कल्प, नमस्कार-कल्प, शक्रस्तव-कल्प, सूरिमन्त्र-कल्प आदिको रचना की। . प्रतीत होता है कि जैनधर्ममें धारणी-पूजाकी प्रवृत्ति कराने वाले यति लोग थे। प्रारम्भमें यतियोंने जिनशासनकी बड़ी भारी सेवा की, लेकिन पिछले तीन चारसौ बरसोंमें वे आचार-शिथिल और इन्द्रियासक्त होगये । अब बहुतसे यति धनके लोभी होगये, संभव है कोई यति नेपाल देशको गया होगा या उसकी भेंट किसी नेपाली बौद्ध लामा (भिक्षु) से हुई होगी। लामाके पास वसुधारा-धारणी देखकर यतिने धारणी ले ली होगी और बदले में लामाको मलयगिरिकृत टीकावाली सूर्यप्रज्ञप्तिकी प्रति दे दी होगी, क्योंकि नेपालसे जो बौद्धग्रन्थ भारतमें आये उनमें सूर्यप्रज्ञप्तिकी एक प्रति थी। इसके अतिरिक्त और कोई जैन ग्रन्थ नेपालमें नहीं मिला । यतिने सोचा होगा कि वसुधारा शब्द जैन सूत्रोंमें अपने साधारण अर्थ 'धनवृष्टि में प्रयुक्त हुआ ही है । जैनोंको इस पर विश्वास हो जायगा । वे लोग व्यापारी और धनी हैं। समझेंगे कि वसुधारा पूजनसे धनकी वृद्धि होगी। इससे यतियों को भी लाभ होगा।
उपर्युक्त कथन अनुमान मात्र है। संभव है, वास्तव कारण कुछ और ही हो।
वसुधारा-धारणीको भगवान् बुद्धने सर्वप्रथम सुचन्द्र नामा श्रावकको दिया। सुचन्द्र पहले तो बडा धनवान् था, परंतु समय पाकर निर्धन हो गया। यह सदाचारी और श्रद्धालु था। इसके बहुत संतान थी जिसका भरणपोषण कठिन हो गया। एक दिन सुचन्द्र भगवान् बुद्धके पास आया और उसने उनसे ऐसा उपाय पूछा जिससे वह फिर धनी हो जाय। भगवान्ने उसे वसुधारा-धारणी प्रदान की। इसके प्रभावसे सुचन्द्र फिर धनी हो गया।
वसुधारा-धारणीकी पूजा मारवाडमें अबतक प्रचलित है। दीवालीकी रातको श्रावक लोग इसका पाठ करते या यतियोंसे सुनते हैं। जब पाठ होता है तब दूध-भरी त्रिघटीमेंसे जिनमूर्ति पर दुग्धधारा पडती रहती है। रात्रिजागरण भी होता है। अन्तमें पुस्तककी पूजा की जाती है । इसकी कोइ २ प्रति 'सुनहरी स्याहीसे बडे सुन्दर अक्षरों में लिखी मिलती है।
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