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જગડુ કવિતા
[१११ तेजम दोच आणे तुरत, अन्न भण्डारसु भरभरे । जगडूओ साह सोलातणो, करग अन सबलो करें ॥१॥ वचन सिंधवां दन्त, नगर तोहां दीव नीहाले । तेजमतुरी तुरत दोस, जिण देष दिषाले । आणे गुर आगलें करें, तिहां सोवन कीधो । परदेसें परभोम डाव, सिर अनह दोधो। . सुंकीया साह सह महिपती, अन.लीजे मन अगलें । जगडूऔ साह सोलातणो, कालदोष इण पर कलें ॥२॥ पडे दंश दुकाल, देस गुजर सोरठह । हैवर नर गैवरें, अनरस टले विसटह । डोंभू मुंके माइया, घरण मेली भरतारें। मलेछ सुर आलूध, इण यग पह आधारें। दुथीयां दोयें लाजालवां, निसदिन आ पंथीयां । जगडूओ साह सोलातणो, पुरे आस अनथीयां ॥३॥ पडे तीन दुकाल, देस गुजर सोरठह । पडें तीन उतराध, अन्न रस टलें विसटह । पड़ें तीन पुरब, अन्न आख्यां नह दोठो। पडे तीन पछीम, पाप सही पृथवी पैयठो । हेकही पंड बिबि पंड होय, करग साही उभो कीयो। जगडूओ साह सोलोतणो, दान राव तिण पर दीयों ॥४॥ राय सोरठ गुजरात, अन दे साल बतीसह । मारवाड ने धाट, काछ अन दीजें तीसह । मेदपाट मालवे, सयल अडतीस सवालख । दिली मण्डल देस, पुरव अनथानक बारह । इम कीया पत्र तांबा तणा, दाने दुसम खंडीयो ।.. जगडूओ साह सोलातणो, शत्कार (सत्रागार) इम मंडीयो ॥५॥ मुंडा आठ सहस्र दीध, वीसल वणवीरह । बोरे सहस मुंड, दीध सिंधवे हमीरह । गंजनवै सुरताण, सहस मुंडा ईकवीसह । मालव सहस अढार, सहस मेवाड बतीसह । रायां सुधार इण पर हुवो, बारें मैं तेडोतरें । जगडूओ साह सोलातणो, की प्रसीध पनडोतरें ॥६॥ इन्द्र कहें देवतां, एक में अचरीज दीठो । मो पहियलो महीयर्ले, कहि कुण पावस तुठो । जदी इन्द्र आहिचें, सदा जुगकरण सुगालें। आयो अवनी मजार, रीधमाती बरसा लें। घरसाद बिने वादो वदे, जिहां जिहां पटंबर जाणोयो । जै कार कर वि तोनुं जुगड, आप इंद्र वखांणीयो ॥७॥
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