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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिमालेख प्रकाशित हैं जिनमें इस वंशके गोत्र वोसलिया, रसोइया, कर्पद शाखा, कउडी शाखाका भी उल्लेख पाया जाता है। इस वंशके सभी लेख १६ वी शताब्दीके हैं आर उनमें से अधिकांश प्रतिष्ठाएं अंचलगच्छाचार्यों के तत्वावधानमें हुई हैं। ३. श्रीमाल नगरको लिच्छवी और मल्लकी जातिवालों के वसाने एवं उनके नामसे श्रीश्रीवंश एवं श्रीमाल वंशका नामकर ग होना किस आधार पर लिखा गया है अज्ञात है। हमें तो यह क्लिष्ट कल्पना जान पड़ती है । श्रीमाल पुराण श्री जटाशंकर लीलाधर आदिने गुजराती अनुवाद सहित प्रकाशित किया है और वह हमारे संग्रहमें है । इसके अतिरिक्त दो अन्य हस्तलिखित प्रतियां जिनके पाठमें काफी अन्तर है भण्डारकर रिसर्च इन्स्टीट्यूट पूनासे भी मंगा कर हमने देखो है। उसके आधारसे श्रीमाल नगर गौतम ऋषिका तपोवन था और श्रीमाल | नगरके नामसे ही श्रीमाल ज्ञातिका नामकरण हुआ है। ४. संवत् १५५५ को प्रशस्तिमें सोनी नागराजका उल्लेख है और उसमें नागराजका कोई विशेषण नहीं एवं कल्पसूत्रको प्रशस्तिमें नागराज के गोत्रका उल्लेख नहीं है अत: दोनों एक होना सिद्ध करनेकी लिए और प्रमाण अपेक्षित हैं। ५. मालवमंडलेश्वर गयासुद्दीनका समय सं. १५०१ से १५७४ तक बतला कर उसका राज्य काल ७४ वर्षका बतलाया गया है पर वह सर्वथा गलत है। जिन प्रशस्तियों के आधारसे यह काल निरित किया गया है उन दोनोंको समझनेमें ही भूल को गई है। पृ. ३४ वाली प्रशस्तिका गयासुद्दीन मल्लारगा नगरका शासक था एवं उसका विशेषण पातशाह है अत: वह मालवमंडलेश्वर गयासुद्दीनसे भिन्न होना चाहिए। पृ. ८४ को प्रशस्तिके जिन श्लोकोंमें गयासुद्दीनका उल्लेख है उन्हों श्लोकोंमें सं. १५२९ लिखा है अतः श्लोकों के ऊपर जो सं.१५७४ छपा है वह गलत या पीछे पहलेका होगा । गयासुद्दीनका समय अन्य प्रमाणोंसे सं. १५२६ से सं. १५५७ तक प्रमाणित है। ओसवाल सोनी संग्रामसिंहने, मंडपदुर्गका शासक सं. १५२० में जब कि उन्होंने "बुद्धिसागर" ग्रंथ बनाया गयासुद्दीनके पिता महमद का होना लिखा है, एवं प्रशस्तिसंप्रहके नं. २०० प्रशस्ति में सं. १५४९ में ही गयासुद्दीनके साथ नासिर शाहका राज्य भी अर्थात् पिता-पुत्रों का राजा लिखा है (१) "मुसलमानी रियासत" पूर्वार्द्ध के पृष्ठ ३८३-८४.(२) हिन्दी तवारीखके पृष्ठ १६० और (३) यवनराज वंशावली के पृष्ठ १८ में सन १४६९ हि.८७३ (वि. सं. १५२६) में गयासुद्दोनका राज्यासीन होना व सन् १५०० (वि. सं. १५५७ हि. ९०५) में मरना व उसके पुत्र नासीरुद्दीनके राज्यासीन होनेका उल्लेख है। । आशा है चीमनलालभाई भविष्यमें भलीभाँति विचार करने ही प्रकाश डालेंगे जिससे ऐतिहासिक भान्तियोंके पनपनेका अवकाश नहीं मिले। For Private And Personal Use Only
SR No.521609
Book TitleJain_Satyaprakash 1945 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1945
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size15 MB
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