SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ १ ] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [ वर्ष & सूर्यनक्षत्र अश्विदेवतात्मक याने आश्विनी दिया है । और एक अत्यंत महत्त्वका वैशिष्टय जो डॉ. शामशास्त्रीजीके ख्याल में नहीं आया है वह है विषुत्रकाल विषयक । ज्योतिष करंडमें दो जगह इसका निर्देश है। पन्नरस मुहुत्तरिणो दिवसेण समा यजा हवा सो होइ विसुहकालो दिणराहणं तु संधिस्मि ॥ अर्थात् - पंदरह मुहूर्त के दिन और रात होते हैं वह विषुव संघीमें होता है । और देखिये " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राई । २८० ॥ काल दिन और रात्री मंडलमज्झत्थंम अचक्खुविसयं गयँमि सूरंमि । जो खलु मत्ताकालो सो कालो होइ बिसुवस्स ॥ २९० ॥ अर्थात् - सूर्य दृष्टिसे पर और मंडलके मध्यमें जाने पर जो मात्रा याने गिनती या गणनाका अथवा कालके परिमाग स्वरूप कल है वह काल विषुव का होता है । 'काललोकप्रकाश' में भी इस विषयपर यही विचार प्रकट किये हैं । तच्च शामादिवसयोः पञ्चदशमुहूर्तयोः । प्रदोषकाले विशेयं निश्चयापेक्षया बुधैः ॥ ७५ ॥ विषुलकालकी गगना और उसका नक्षत्र देखनेकी प्रदोषकालकी यह प्राचीन प्रणाली उपर्युक्त लान विषयक पथमें आई है । और जिस समय वसंतसंपातका सूर्य अश्विनी में था उस समय उस दिन प्रदोषकालमें स्वाति नक्षत्रका पूर्वक्षितिज पर उदय तथा शरदसंपात के दिन अश्विनीका उदय ही 'चक्षुर्वै सत्यं' प्रतीत हो सकता है। ज्योतिषकरडं पथ २८९ से इस और यह चक्षुर्वै सत्यंका प्रमाण मिल जाता है। दक्खिणमयणे विसुत्रेसु नहयलेऽभिजी रसामले पुस्से । उत्तरअयणे अभिई रसायले नहयले पुस्से ॥ २८९ ॥ For Private And Personal Use Only इसमें विषु कालमें नभस्तल और रसातलके नक्षत्र दिये हैं। दक्षिण विषुव अर्थात् शरदसंपात के समय नभस्तल पर अभिजित रहता है उससे आठवां नक्षत्र ही तब पूर्व क्षितिज पर उदित रहेगा, वह ठीक आश्विनी है । उत्तरायग विषुव यानें वसंत संपात के समय पुण्य नभस्तल पर रहेगा उससे ठीक आठवां नक्षत्र स्वाती है और वह बराबर पूर्व क्षितिज पर रहेगा । अतएव, उपर्युक्त लग्न विषयक पथका डॉ. शामशास्त्रीजीका अनुवाद यथार्थ नहीं है यह स्पष्ट है 1
SR No.521596
Book TitleJain_Satyaprakash 1943 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1943
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy