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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[ वर्ष ८
प्रत्युत एक प्रकारकी फलि है, देखिये प्लैट की " हिन्दुस्तानी डिक्षनरी" में चौला शब्द =s.m. A kind of bean or pulse. ( लोभिया, बोड़ा); तथा भाई काहनसिंह द्वारा संकलित “ गुरुशब्दरत्नाकर महाकोष " में " चावला " = एक अन्न, जो माषकी किस्मका होता है । इसकी फली बहुत लम्बी होती है । भारतवर्ष में चावल की पैदावार बहुत कम है। पंजाब में होती ही नहीं, बंगालमें बहुत थोडा । यह गुजरात और कनाराके समुद्री तटपर होती है।
फ्रांस के प्रसिद्ध विद्वान सिलवां लेवीका मत है कि आलिसंदगका व्युत्पत्तिमूलक अर्थ है " सिकन्दरिया ( अलैग्ज़ैड्रिया ) नगरीसे आया हुआ " जो ईजिप्ट देशकी बन्दरगाह है । गुजरात और कनाराके समुद्री तट पर वहां से जहाज़ आते जाते थे। संभव है कि यह फली वहांसे आती हो और इसी लिये आलिसंदग कहलाती हो । आजकल भी कई एक वस्तुएं नगरोंके नामसे प्रसिद्ध हैं । जैसे - सहारनी = सहारनपुरका आम; नागपुरी = नागपुरका सन्तरा आदि । सिकन्दरका स्पष्ट उल्लेख भारती साहित्य में केवल महाराज अशोककी धर्मलिपियों में पाया जाता है, जहां शाहाबाज़ और मानसेहरामें " अलिकसुदर " तथा कालसीमें अलिक्यसुदल " रूप मिलते हैं ।
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उपर्युक्त कल्पनाका आधार है सिलवां लेवीका “भारतीय साहित्यमें अलैग्जैंडर और अलेग्जेंड्रिया " शीर्षक लेख, जो "मैमोरियाल सिलवां लेवी” Memorial sylvain Levi नामक ग्रन्थ में पृ. ४१३-२३ पर प्रकाशित हुआ है । पैरिस, सन् १९३७ ।
३. जैनसंस्कृत मुखरी=मुहर, सावरेन ।
मुखरी शब्द विनयंधर चरित्रके पत्र १८ (ख) पर मिलता है, जिसका परिचय जैन राज्य प्रकाशके अंक नं. ८४ में कराया जा चुका है। प्रसंग इस प्रकार है : दो पथिक आपस में बातें करते जा रहे थे। एकने कहा कि आज मैंने छः मुखरियां उपार्जन की हैं । उसका यह कथन एक लुटेरेने सुन लिया । लुटेरेने मुखरीका अर्थ सोनेकी मुहर समझकर उस पथिकको मार डाला, लेकिन जब उसकी तलाशी ली तो तांबेकी दमडियां मिलीं । १
मुखरी शब्द फारसी भाषा के मुहर शब्दका संस्कृत रूप बनाया प्रतीत होता है। लेकिन संस्कृत में मुहर के लिये मुद्रा शब्द मिलता है जिसे " निष्क" और " दीनार " भी कहते हैं । कई विद्वानोंका मानना है कि संस्कृत शब्द मुद्रा भी प्राचीन कालमें फारसी भाषासे लिया गया था । चूंकि इस अर्थ में मुखरी शब्द संस्कृत कोषों में नहीं मिलता, इस लिये संभव है कि इसे विनयधरचरित्रके रचयिताने स्वयं गढ़ा हो ।
१, एकदा कोपि पान्थः पथिकेन वार्ता कुर्वन् याति मयाय षड् मुखर्य उपार्जिताः । एतासामन्यद् वस्तु समानयिष्यामीति श्रुत्वा लुण्टाकेन व्यापादितः सुवर्णमुखरी भ्रान्त्या । तदनु दृष्टास्ताम्रमय्यो लोकभाषया दमडी ।
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