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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत-प्राकृतमयी “भीमकुमार-कथा" लेखक:-श्रीमान् डा. बनारसीदासजी जैन, M. A., PH. D. प्रोफेसर, युनिवासटी ओरियंटल कालिज, लाहौर वैसे तो सम्यक्त्वसप्ततिवृत्तिमें भीमकुमारकथा पाई जाती है, परंतु जिस रचनाका यहां परिचय कराया जा रहा है, वह इससे भिन्न है और संस्कृत-प्राकृत पद्यमयी है, अर्थात् इसके प्रत्येक पद्यका पूर्वार्ध. संस्कृतमें और उत्तरार्ध प्राकृतमें है। स्वतन्त्र रूपसे इस नामकी कोई रचना अभी तक प्रसिद्धि में नहीं आई । नही इसका नामोल्लेख "जैन ग्रन्थावली" तथा "जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास में मिलता है। अतः इसका प्रकाशन वाञ्छनीय है, क्योंकि यह प्राकृतके अभ्यासियोंको अवश्य लाभदायक होगा जैसा कि नीचे दिये पदोंसे स्पष्ट होगा। मुझे इस रचनाकी दो प्रतियां ज्ञात हैं जो पंजाबके पट्टी नगर (ज़िला लाहौर) के भंडारमें विद्यमान हैं। इनमें से एक तो काफी प्राचीन है और इसके बहुत से पत्र जीर्ण हो चुके हैं । एक पत्र नष्ट हो गया है। दूसरी प्रति पहलीकी अपेक्षा नवीन है। कई जगह इनका पाठ खण्डित और मद्धम हो गया है । इस रचनामें कुल २५१ पद्य हैं। इन प्रतियोंके खंडित होनेके कारण इनके आधार पर इस रचनाका संपादन सफलता पूर्वक नहीं किया जा सकता । इस लिये यदि किसी महानुभावको इसकी अन्य प्रतियोंका पता हो, वे चाहे पूर्ण हों या अपूर्ण, तो प्रस्तुत लेखकको सूचना देकर उसे अनुगृहीत करें। हो सके तो प्रतिका वर्णन भेज देवें अन्यथा यह लिखें कि वह प्रति कहां और किसके अधिकार में है। यदि कोई और प्रति मेरे हाथ लगी तो शीघ्र ही इसे प्रकाशित किया जावेगा। भीमकुमार कथाके कुछ पद्य कपिशीर्षकदलकलितं जिनभवनसुकेशरश्रियाश्लिष्टम् । किंतु जडसंगमुकं इहत्थि कमलं व कमलपुरं ॥१॥ १. इस सूचनाके लिये में आचार्य श्रीमद् विजयवल्लभसूरीश्वरका ऋणी हूं। २ इस संस्कुतप्राकृत मिश्रणको “ गंगाजमनी" भाषा कह सकते हैं । इस प्रकारका संस्कृत और दक्षिणी भाषाओं (मलयालम् , कण्णड) आदिका मिश्रण भी पाया जाता है जिसे "मणिप्रवालम्" कहते हैं । फारसीहिंदीका मिश्रण अमीर खुसरौने किया । इसे “ रेखता" कहते हैं । अरबीफारसीके मिश्रणके भी उदाहरण मिलते हैं। ३. " अ कैटेलॉग आव मैन्युस्किस्पट्स् इन दि पंजाब जैन भंडारस् ", लाहौर, सन् १९३९ । पृ. ८२ । पुस्तक नं. १९९४-५ । इन दोनों प्रतियोंमें कर्ताका नाम, रचना तथा लिपिकाल नहीं दिये गये। For Private And Personal Use Only
SR No.521593
Book TitleJain_Satyaprakash 1943 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1943
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size16 MB
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