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एक अलभ्य महत्त्वपूर्ण प्रति
लेखक : श्री अगरचंदजो नाहटा, बीकानेर
हमारी उपेक्षा, असावधानता और अविवेकके कारण हजारों ग्रंथ नष्ट हो रहे है एवं विक्रय द्वारा इतस्ततः हो रहे हैं। और खोजशोधके अभावमें कई महत्त्वके ग्रंथोका हमें पता तक नहीं है।
कई वर्षों पूर्व नाथनगरनिवासी श्री अमरचंदजी बोथराने कहा था कि अजीमगंजके नेमिनाथ भंडारमें एक अति महत्त्वकी प्रति थी जिसमें खरतरगच्छीय आचायेने रचे हुए स्तुति-स्तोत्रोंके अतिरिक्त उनके संबंधी कई ऐतिहासिक कृतियें भी थी। इस प्रतिको बीकानेरके खरतरगच्छीय श्रीपूज्यजी श्री जिनचारित्रसूरिजीने भी देखी थी व इसकी प्रत्यंतर करकेने लिये वे उसे बीकानेर साथ ले गये थे, पर न मालूम वह प्रति कहां गायब हो गई कि बहुत प्रयत्नसे खोज करने पर भी अद्यावधि उसकी प्राप्ति न हो सकी।
इस वर्ष बीकानेरके बृहद् ज्ञानभंडारके फुटकर पन्नोंका अवलोकन करते समय सौभाग्यवश उस प्रतिको सूचि उपलब्ध हुई जिसे सं. १९२४ के ज्येष्ठ शुक्ला प्रथम १३ को अजीमगंजमें उक्त प्रतिको वहांकी बडी पोसालमें देखकर लिखी थी। सूचिके लिखे अनुसार इसकी पत्रसंख्या १४४ या १४५ थी और सं. १४९० के मार्गशीर्ष शुक्ला ७ को प्रति लिखी गई थी। श्री अमरचंदजी बोथराके कथनानुसार इस प्रतिका नाम “जिनभद्रसूरिस्वाध्यायपुस्तिका" । था
उपलब्ध सूचिके अनुसार यह प्रति करीब १०० कृतियोंके संग्रहरूप थी। प्रारंभमें दशवैकालिक, पाक्षिकसूत्र, साधुप्रतिक्रमण, स्थविरावली, उपदेशमाला, बृहत्संग्रहणी, कर्मविपाक आदि प्रकरण थे। मध्यमें जिनेश्वरसूरि, जिनचंद्रसूरि, अभयदेवसूरि, जिनकल्लभसूरि, जिनदत्तसूरि, जिनेश्वरसूरि आदिकी कृतियें थीं । और अंतमें जिनेश्वरसूरिरचित चंद्रप्रभचरित्र (गाथा ४०) था ।
इस प्रतिमें, अन्यत्र अलभ्य ऐसी कई कृतियें भी थी । उनका नाम देता है, ताकि हमके महत्वका पता चल जाय ।
नीने
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