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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [११२] શ્રી જેન સત્ય પ્રકાશ [१५८ वहां श्रीसंघने अत्यंत भक्ति की, और कार्तिक शुक्ला ३ को प्रभातके समय अनशन-आराधना पूर्वक स्वर्ग सिधारे । श्रीसंघने अग्निसंस्कार कर उस स्थान पर स्तूप बनाया, और माघ शुदि १ को प्रतिष्ठा की गई। इस अवसर पर संघनायक पंजू , केसु, निहाल आदि श्रावकोंने पक्वानादि द्वारा संघको जीमाया और अन्य कार्यों में भी द्रव्य खरचा । ३ उ० धनराजगीत, गाथा ६, कर्ता-चारित्रोदय ये मुनिवर सेठीवंशके भोलाशाहकी पत्नी रंगादेके पुत्र एवं श्रीकल्याण: तिलकजीके शिष्य थे। इनके विषय में १ जयसुन्दर, २ नयरंग और ३ हरखविजयजोके गीत भी मिले हैं, पर उनमें ऐतिहासिक वृत्तांत अधिक कुछ भी नहीं है। ४ साध्वी कनकलक्ष्मीगीत, गाथा ७, कर्ता-जगमाल इन साध्वीजीके पिताका नाम पूजा एवं माताका नाम सुपियारदे था । आप गणधरगोत्रीय सा. होलाकी वधू थी, इनकी सासुका नाम सुहवदे था। आपके दीक्षा-अवसर पर शाह भोना, कूपा, भरमादे, फूलमदेने महोत्सव कर बहुतसा द्रव्य खरचा था । आपने साध्वी सोवनलक्ष्मीके पट्टको दीपाया। ५ जिनभद्रसरिपट्टधर जिनचंद्रमरिगीत, कर्ता-मेरुनंदन-हिरादि - आप साहुसखागोत्रीय बच्छराजकी पत्नी पाल्हादेके पुत्र थे । श्रीजिनभद्रसरिके वचनानुसार की तिरत्नसरिजीने आपको गच्छनायकपद-सरिपद दिया । यह उत्सव पाटणमें, समरसिंह राजाका फरमान पाप्त कर समरसिंहकी पत्नी जीवादेने वि. सं. १५१५ के वैशाख वदि २ ( मारवाडी जेठ वदि २) को किया। जिनभद्रसूरिके उपदेशसे संघपति मंडलिकने आबू पर मंदिर बनाया । उस नवफणापार्श्वमंदिरकी आपने प्रथम प्रतिष्ठा को । ६ धर्मरत्नसरिगीत, गाथा ७ आप ओसवालवंशकी मालू शाखाके शा वीराकी पत्नी विमलादेके पुत्र थे । वि. सं. १५३० ज्येष्ठ २ शनिको उपरोक्त जिनचन्द्रसूरिजीने मांडवगढमें आपको आचार्यपद देकर कीर्तिरत्नसरिजीके २ पट्ट पर सुशोभित किया। पटोत्सव मंडणने किया। ७ उ० कमललाभगीत, गाथा ८. कर्ता-राजहंस आप पारखगोत्रीय शा. वीरजीकी पत्नी वीरमदेके पुत्र थे। उ० समयराजजीके वचनसे प्रतिबोध पाकर आप दीक्षित हुए थे। श्रोजिनराजसरिजीने आपको राजनगरमें उपाध्यायपद दिया था। विहार करते हुए आप सिन्ध प्रान्तमें पधारे थे। १ श्रीक्षमाकल्याणजी रचित पट्टावलीमें 'चम्मगोत्रीय' लिखा है वह उपरोक्त समकालीन गीतसे गलत मालूम होता है ।। २ इनके लिये हमने संपादित किया “ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह" देखें। ३ इनके लिखे हमारा "युगप्रधान जिनचंद्रसूरि" पृ० १८२ देखें । For Private And Personal Use Only
SR No.521586
Book TitleJain_Satyaprakash 1943 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1943
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size18 MB
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