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"श्री जैन सत्य प्रकाश”
[कविता]
रचयितापूज्य मुनिमहाराज श्री कांतिसागरजी, साहित्यालंकार
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सत्य प्रकाश! सत्य प्रकाश!!
घर घर हो तेरा उद्भास। जैन कलाका है परिचायक, नीतिधर्म विज्ञान प्रदायक । शिल्प सुशिक्षा नैतिक विषयक, दिग्दर्शक है सत्य प्रकाश ! ॥ १॥
जैन-सुसंस्कृति का सर्वोत्तम, मासिक-पत्रों में है अनुपम । क्यों न इसे अपना सब हम,
देखें इसका विभव विकास ॥२॥ व्यथा-सिन्धु से रखेने वाला, शांति-सुधारस देने वाला । सब का मन हर लेने वाला, पढ़ें निकालें हम अवकाश ॥३॥
मेरी अंतिम है अभिलाषा, ज्ञान-पिपासु बनें नित प्यासा । भक्ति मुक्ति मय इसकी भाषा,
करें पान, भरभर उल्लास ॥४॥ जैनधर्म का जीवन दाता, विद्याबल विज्ञान बढ़ाता । नये नये नित पाठ पढाता, चिर जीवे, प्रभु जगन्निवास ॥५॥
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