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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ २४ ] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [ कारण और लिपिकार की अनभिज्ञता के कारण थोड़ा बहुत भेद हो जाना अनिवार्य है, परन्तु यहां तो यह दशा है कि यदि इस पद्यकी संस्कृत वृत्ति न होती तो इसका सामान्य अर्थ करना भी कठिन था । इसी भांति कोश के अन्दर आये हुए बहुतसे पारसी शब्दों के लिखित रूप अपने प्रचलित साहित्यिक रूपों से भिन्न हैं । संभव है कि इस पद्य तथा कोश की भाषा फारसी की कोई प्रान्तीय बोली हो । इस कोश के विशेष अनुशीलन से इस बात का कुछ पता लग सकता है कि जिस समय और जिस प्रान्त में यह कोश रचा गया, उस समय और उस प्रान्त में फ़ारसी का उच्चारण कैसा था । लिपिकारने पारसी के विशिष्ट वर्णों के उच्चारण को प्रकट करने की चेष्टा की है । जैसे-खे, फे को प्रगट करने के लिये 'क', 'प' के पूर्व जिह्वा1. मूलीय और उपध्मानीय के चिह्न लगाये हैं । कभी कभी 'खे' के लिये 'क', 'ख', 'ष' भी प्रयुक्त किया है । इसी प्रकार 'फ़े' के लिये 'फ' का प्रयोग हुआ है। 'जे' को 'ज' या 'य' से, दाद (ज्वाद ) को 'द' से और 'से' (थे) को 'थ' से प्रगट किया है । विचित्र बात यह है कि 'ते' के लिये प्रायः 'थ' आता है यद्यपि भारत में फारसी 'ते' का उच्चारण भारतीय 'त' के समान है । इस प्रति के अन्त में प्रस्तुत पारसी पद्य की संस्कृत टीका भी मिलती है । इसमें 'रहमाण' शब्द की व्युत्पत्ति उल्लेखनीय है । वास्तव में 'रहमाण' अरबी भाषका शब्द है परंतु टीकाकारने इसे संस्कृत रूप मान इस प्रकार व्युत्पत्ति की है रहमाणशब्दस्य कृता व्युत्पत्तिर्यथा - रह त्यागे इति चौरादिको विकलोनन्तो धातुः । रहयति रागद्वेषकामक्रोधादिकान् परित्यजतीत्येवं शक्त इति विग्रहे शक्तिवयस्ताच्छील्य इति शानड् आन्मोन्तः आने इति मोन्तः । रषुवर्णेभ्यो नोर्णेत्यादिना णत्वमिति रहमाणः । कोर्थः ? रागद्वेषविनिर्मुक्तः श्रीमान् वीतरागो रहमाणः । नान्यः कश्चित् । तस्य संबोधनं रहमाण । जैन विद्या भवन, कृष्णनगर, लाहोर. ५-१०-४२ (६) लेखक के एक सहाध्यापक मराको (आफ्रिका) के रहनेवाले हैं और अरबी बोलते हैं, • उनके बोलने में अरबी 'ते' का उच्चारण भारतीय 'थ' से मिलता है । वे " तरतीब " को “थरथीब” कहते हैं । इसी प्रकार और शब्दों में जब वे 'ते' बोलते हैं तो 'थ' सुनाई देता है । For Private And Personal Use Only
SR No.521583
Book TitleJain_Satyaprakash 1942 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1942
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size22 MB
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